Bio-data

Sanjay Dwivedi

Present Status
Working As Resident Editor With
Dainik Haribhoomi,Raipur The Largest Circulated Hindi Newspaper From Chhattisgarh.


Contact:
A-2, Anmol Flats,
Avanti Vihar, Teli Bandha,
Raipur (Chhattisgarh)
Cell Number: 9893598888, Land Line: 0771-2444107
E-mail:
sanjaydwivedi2002@yahoo.com

Work Experience:
1. Dainik Bhaskar, Bhopal (1994)
Started Carreer With Dainik Bhaskar As A Sub Editor. Learnt
The Basic Of Journallism eg. Reporting, Editing etc.


2. Swadesh, Bhopal-Raipur (1995-1997)
Joined Swadesh, Bhopal In 1995 As Asstt. Editor. Looking
After Entire Edition. Transfered To Its Raipur Edition In 1996
As Executive Editor.


3. Navbharat , Mumbai (1997-2000)
Joined Navbharat, The Second Largest Circulated Newspaper
Of MP And Maharashtra As Sub Editor, Mumbai. Looking
After Front Page


4. Dainik Bhaskar, Bilaspur (2001-2004)
Back To Chhattisgarh Again And Joined Dainik Bhaskar As News Editor To The Its Bilaspur Edition. Looking After Entire Edition.


5. Dainik Haribhoomi, Raipur (2004 Till Date)
Joined Dainik Haribhoomi In 2004 As News Editor. Promoted As Resident Editor In may, 2006.


Note :
Also Worked As Reader, Journalism Faculty, Kushabhau Thakrey Patrakarita Vishwavidyalaya, Raipur For 6 Months.

Education:
- Master Of Journalism And Mass Communication From Makhanlal chaturvedi Rashtriya Patrakarita Vishwavidyalaya, Bhopal.

Personal:
DOB-July 7th, 1974
Martial Status :Married
Hobby: Reading, Writing


Publications:
1. Hundred Of Articles Havebeen Published In Diffrent Newspapers And Magzines Nation wide.

2. Five Books Havebeen Published, tittle: Shawak, Es Suchna Samar Men, Mat Puch Hua Kya-Kya, Serweshwar Dayal Sexena Aur Unki Patrkarita And Surkhiyan.
3. Edited Two Books Titled Yaden: Surendra Pratap Singh,
Shri Arjun Singh Abhinandan Granth : Seva Aur Samarpan Ki Ardhshati.


About Computer:

Able To Work Online.

Permanent Address:
S/o-Dr. P.N. Dwivedi
Ram Bagh, Gandhi Nagar, Basti-272001 (Utter Pradesh)

समर्पण



मेरे गुरु, मेरे अध्यापक पूज्य डॉ. श्रीकांत सिंह और
परमश्रद्धेया गीता भाभी को सादर


00संजय द्विवेदी00

भूमिका



सर्वेश्वर जी पर युवा पत्रकार संजय द्विवेदी की पुस्तक उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का सम्यक मूल्यांकन करने के ध्येय से प्रेरित है। श्री संजय द्विवेदी की पांडुलिपि को पढ़ते हुए मुझे सातवें दशक का वह दौर याद आ गया जब सर्वेश्वर जी हिंदी के अत्यंत प्रतिष्ठित साप्ताहिक ‘दिनमान’ के स्टाफ मे कवि, नाटककार और पत्रकार के साथ ही प्रखर समाजवादी चिंतक के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। उन दिनों दिनमान में किसी पत्रकारी कि रिपोर्ट का प्रकाशित हो जाना उसके लिए प्रतिष्ठाकारक होता था। दिनमान के संस्थापक-संपादक अज्ञेय जी ने श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें महत्वपूर्ण दायित्व दिया था। अज्ञेय जी के बाद श्री रघुवीर सहाय के संपादन काल में भी सर्वेश्वर जी का पत्रकारीय लेखन दिनमान का विशिष्ट आकर्षण बना रहा। हिंदी के इस तेजस्वी पत्रकार से मुलाकात का सौभाग्य मुझे श्री रघुवीर सहाय के संपादन काल में प्राप्त हुआ था। दिनमान में सर्वेश्वर जी के स्तंभ ‘चरचे और चरखे’ पढ़ने की ललक मेरे जैसे असंख्य पाठकों में रहती थी, जो उसे उत्कृष्ट लेखन का मानदंड मानते थे। उनके लेखन में उनके लेखन से समय की समझ और भाषा के संस्कार विकसित होते थे। लेखन के अलावा उनकी बातचीत में भी लोहिया के मौलिक चिंतन की खनक सुनाई देती थी। सर्वेश्वर जी अपनी साफगोई के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी स्पष्टवादिता और सुलझी हुई समझ प्रभावित करती थी। इसके साथ ही उनका विप्लवी स्वभाव, यथास्थितिवादी पत्रकारिता एवं इतर लेखन में रमें लोगों को कई बार आहत भी करता था।

पत्रकारीय लेखन कैसे अपने समय और समाज की प्रमुख प्रवृत्तियों को दर्ज करने वाला दस्तावेज बन जाता है, इसकी समझ सर्वेश्वर जी को थी। वे बताया करते थे कि किस प्रकार घटना विशेष की रिपोर्टिंग करते समय उससे जुड़े सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक मुद्दों को भी ध्यान में रखना चाहिए। जहां घटना हुई है, उस क्षेत्र की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की भी जानकारी होनी चाहिए। घटना अथवा घटनाक्रम के यदि कुछ ऐतिहासिक उत्स हैं तो उनका भी संक्षिप्त उल्लेख हो जाना कैसे उपयोगी हो जाता है। उनका मानना था कि इन सारे पहलुओं को संजोकर किया गया पत्रकारीय लेखन दीर्घजीवी हो सकता है। सर्वेश्वर जी की बहुत साफ राय थी कि तथ्यों से छेड़छाड़ किए बना पत्रकारीय लेखन का झुकाव कमजोर और उत्पीड़ित व्यक्ति तथा वर्ग की ओर होना चाहिए। जिसके साथ अन्याय हुआ है उशकी जगह पर अपने आपको खड़ा करके घटनाक्रम का मूल्यांकन करने के पक्षधर थे। ऐसा करते हुए भी भावुकता से बचना चाहिए।

सर्वेश्वर जी ने जिस दौर में साहित्यिक लेखन के साथ ही उतनी ही व्यग्रता के साथ पत्रकारिता की थी तो छपे हुए शब्दों को समाज तथा राजनीति में बड़ी गंभीरता से लिया जाता था। पत्रकारिता मूल्यों को जीती थी। उन मूल्यों से समझौता करके सच पर भ्रम केजाले बुनने वाली प्रायोजित पत्रकारिता तबतक विरल थी, इतनी सघन नहीं थी जितनी आज है। यह कहना सही नहीं होगा कि तब पत्रकारिता पूर्णतः निष्कलंक और पवित्र थी। सत्ता और प्रभुता के सूरजमुखी तब की पत्रकारिता में भी थे, परंतु उनकी एक तो संख्या बहुत कम थी और दूसरे उस समय के पत्रकारों को अपने लेखन की विश्वसनीयता की भी चिंता रहती थी।

जिस आम आदमी को आज राजनीति चुनावी नारे के रूप में उछालती है, उसके साथ सर्वेश्वर जी की पत्रकारिता के आत्मीय सरोकार थे। सरोकारों में आत्मीयता के साथ ही उसके लिए जूझने की लपट भी कौंधती थी। सर्वेश्वर जी की पत्रकारिता का युवा और प्रखर पत्रकार संजय द्विवेदी ने सम्यक मूल्यांकन करने में सफल प्रयास किया है। कहीं-कहीं लेखक की निजीश्रद्धा कुछ अधिक मुखर हो जाती है। ऐसा हो जाना स्वाभाविक भी है। सर्वेश्वर जी के लेखन को पढ़ते हुए उनकी जो छवि संजय द्विवेदी के मन में बनी थी उसमें महानता के रंग काफी गहरे रहे होंगे। दूसरा कारण यह हो सकता है कि सर्वेश्वर जी भी पूर्वी उत्तर प्रदेस के उसी बस्ती नगर से थे जहां संजय द्विवेदी का जन्म और लालन-पालन हुआ। संभव है सर्वेश्वर जी पर एक पूरी पुस्तक लिखने के लिए माटी का यही रिश्ता सर्वाधिक प्रेरक रहा हो।

संजय द्विवेदी ने सर्वेश्वर जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर यथासंभव अधिक से अधिक जानकारी संकलित की है। उनकेलेखन के उद्धरणों के माध्यम से उनके व्यक्तित्व की विकास यात्राको लेखक ने बड़ी संजीदगी के साथ रेखांकित किया है। सर्वेश्वर जी और उनके लेखन को समझने के साथ ही यह पुस्तक हिंदी पत्रकारिता की पृष्ठभूमि तथा उसके समसामयिक परिदृश्य का भी विवेचन करती है। यह पुस्तक संजय द्विवेदी के लेखन में आ रही प्रौढ़ता और भाषा-शैली में आए निखार की भी साक्षी है। उनकी पूर्व प्रकाशित पुस्तकों ‘इस सूचना समर में’ और ‘मत पूछ क्या-क्या हुआ’ को मैंने पढ़ा है, इसलिए विश्वासपूर्वक कह सकता हूं कि संजय द्विवेदी के लेखन में जो परिष्कार आ रहा है वह संभावनाओं की कंदील की लौ को ऊँचा कर रहा है। पत्रकारिता को ही लें तो स्व. सुरेन्द्र प्रताप सिंह पर केंद्रित पुस्तक ‘यादें – सुरेन्द्र प्रताप सिंह’ के संपादन में कहीं-कहीं जिस जल्दबाजी की झलक दिख जाती थी वह भरपूर श्रम से तैयार की गई इस पुस्तक में नहीं है। संजय द्विवेदी से दीर्घजीवी लेखन की अपेक्षा पूरे भरोसे के साथ की जा सकती है।


0 रमेश नैयर
152-ए, समता कॉलोनी, रायपुर

अपनी बात




हिन्दी पत्रकारिता आज संक्रमण काल के दौर से गुजर रही है । ‘मिशन’ और ‘प्रोफेशन’ की बहस थमी नहीं है और अखबारों विज्ञापन, मालिक एवं व्यवसायगत दबाव गहरे हुए हैं । साथ ही उसकी विश्वसनीयता पर भी सवलिया निशान उठने लगे हैं । ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि हम उन मनीषी पत्रकारों को याद करें जिनका जीवन और लेखन उन्हीं कलमकारों की परम्परा का एक नाम है । सर्वेश्वर के मन में तमाम बुनियादी सवालों पर जो बेचैनी और तल्खी है उसके चलते वे हमारी नई पत्रकार-पीढ़ी के सामने एक ज्योतिपुंज के रूप में उभरते हैं । क्योंकि सर्वेश्वर की पत्रकारिता सत्ता के पायदानों से नहीं गरीबों के दुख, गांव की चौपाल एवं महानगरों में जीवन का संत्रास भोग रहे लोगों से शुरू हो ती है । सर्वेश्वर की पत्रकारिता वस्तुतः जनधर्मी पत्रकारिता है, जो सत्ता और पत्रकारिता की दोस्ती नहीं चाहती ।

सर्वेश्वर की पत्रकारिता में निरंतर एक ‘रचनात्मक उत्तेजना’ की तलाश करते रहे तथा अपने निजी अनुभवों व संत्रासों से उन्होंने अपनी लेखनी को धारदार बनाया । ऐसे जनप्रतिबद्ध पत्रकार पर कार्य करने की प्रेरणा मुझे अपने पिता श्रद्धेय डॉ. परमात्मा नाथ द्विवेदी से मिली । वे सर्वेश्वर जी के मित्र एवं प्रशंसक हैं । उनके द्वारा सर्वेश्वर जी के रचनाधर्मी व्यक्तित्व की चर्चाएं सुनकर मेरे मन में भी सर्वेश्वर को समझने की ललक पैदा हुई । बचपन के दिनों में पराग का पाठक होने के नाते सर्वेश्वर जी का नाम मेरे जेहन में पहले से मौजूद था । ऐसे युगप्रवर्तक पत्रकार के बारे में कार्य आरंभ करते हुए मुझे कार्य की जटिलता का अहसास हुआ पर इस कार्य में उतरने पर एक आनंद का अनुभव हुआ और लगा कि सर्वेश्वर पराए नहीं अपने बीच के एक इन्सान हैं जो अपनी लगन एवं प्रतिभा से ऊँचाइयों को छू लेते हैं । व्यक्तिपूजा की परंपरा के वातावरण में हम लोगों को तत्काल भगवान का दर्जा देकर उनकी पूजा-अर्चना प्रारंभ कर, उन्हें अपने ले दूर कर देते हैं जबकि इन आदर्शों की अर्थवत्ता इसमें है कि हम उनकी समूची विकास यात्रा एवं संघर्षों से प्रेरणा लें और यह महसूसें कि कैसे एक साधारण व्यक्ति अपनी मेहनत और लगन से ऊँचाइयों को प्राप्त करता है । सर्वेश्वर की जीवन यात्रा इस संदर्भ में युवा पीढ़ी के लिए सबसे बड़ा उदाहरण बन सकती है ।

हिन्दी साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का नाम अपरिचित नहीं है । हालांकि एक कवि के रूप में वे ज्यादा जाने-पहचाने गए, इसलिए उनके पत्रकार व्यक्तित्व का उचित मूल्यांकन न हो पाया । साहित्य के क्षेत्र में उनका व्यक्तित्व इतना बड़ा था कि उनके पत्रकारीय व्यक्तित्व पर सहजता से लोगों की दृष्टि ही नहीं जाती । वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे – वे कवि, नाटककार, कथाकार, बाल साहित्यकार, चिंतक एवं पत्रकार सब कुछ थे । उनके योगदान को किसी क्षेत्र में कम करके आंका नहीं जा सकता । पत्रकार के रूप में उनकी सामाजिक चिंताएं बहुत व्यापक थीं । एक पत्रकार के रू में उनका लेखन जहां तत्कालीन दौर की कड़ी आलोचना है तो दूसरी ओर सही मायनों में विकसित, मानवीय समाज-रचना की आकांक्षा से परिपूर्ण है । ऐसे मनीषी पत्रकार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का अब तक मूल्यांकन न किया जाना दुखद है । इस अकिंचन प्रयास के माध्यम से पत्रकार सर्वेश्वर को समझने की कोशिश की गई है। क्योंकि इसके बिना पत्रकार सर्वेश्वर के व्यक्तित्व को समझ पाना सहज नहीं है।

पत्रकार सर्वेश्वर पत्रकारिता के क्षेत्र में भी एक कवि-साहित्यकार के रूप में ही प्रतिष्ठित रहे । दिनमान जैसी उच्च कोटि की पत्रिका के कुशल सम्पादन व प्रकाशन के बावजूद उन्हें पत्रकार के रूप में मिली कम या सीमित चर्चा आश्चर्यजनक है । ऐसा ही कुछ दिनमान के संस्थाप-सम्पादक अज्ञेय, सम्पादक रघुवीर सहाय एवं श्रीकांत वर्मा के साथ भी हुआ । इस सबके मूल में सबसे बड़ा कारण यही रहा कि ये लोग साहित्य जगत के एक बड़े और समादृत नाम बन जाने के पश्चात पत्रकारिता में आए । सो उनके व्यक्तित्व पर उनका साहित्यकार हावी रहा पर सर्वेश्वर के लेखन में जनता से उनका जुड़ाव, सहज भाषा का प्रवाह एक पत्रकार के रूप में उनकी प्रतिष्ठा को बनाता और कायम करता है । इसके बावजूद सर्वेश्वर का पत्रकार व्यक्तित्व समीक्षकों की दृष्टि में न आया । पत्रकारिता के क्षेत्र में आए संकट व संक्रमण में सर्वेश्वर की प्रासंगिकता बहुत बढ़ जाती है । आज वे जिस तेजस्विता के एवं खुलेपन से विसंगतियों एवं विद्रूपताओं पर हल्ला बोलते हैं, सत्ता प्रतिष्ठानों पर बैठे लोगों को खरी-खोटी सुनाते हैं – यह सारा कुछ आज की नई पत्रकार पीढ़ी के लिए मशाल की तरह है जो लड़ने और डटे रहने की क्षमता देती है । सर्वेश्वर का जीवन संघर्ष, जीवन की विसंगतियों से लड़ते नौजवान की एक कस्बे से होकर देश की राजधानी में स्थान बनाने की कथा है । इस प्रयास के माध्यम से सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के पत्रकारीय व्यक्तित्व एवं कृतित्व को प्रथम बार तटस्थ भाव से परखने का प्रयत्न किया गया है ।
मेरा पूज्य गूरुवर डॉ. श्रीकांत सिंह के कुशल मार्गदर्शन और प्रेरणा से मेरा यह महत्वपूर्ण कार्य संभव हो सका है । यह पुस्तक पूरे विनय के साथ उन्हें समर्पित है ।
उम्मीद है यह किताब पत्रकार बिरादरी के साथ-साथ हिंदी प्रेमियों का भी स्नेह पाएगी ।


0संजय द्विवेदी, 20 मई, 2004

पत्रकारिता – अर्थ, परिभाषा एवं प्रकृति





पत्रकारिता – अर्थ एवं परिभाषा
सामाजिक जीवन में चलने वाली घटनाओं, झंझावातों के बारे में लोग जानना चाहते हैं, जो जानते हैं वे उसे बताना चाहते हैं । जिज्ञासा की इसी वृत्ति में पत्रकारिता के उद्भव एवं विकास की कथा छिपी है । पत्रकारिता जहाँ लोगों को उनके परिवेश से परिचित कराती ह, वहीं वह उनके होने और जीने में सहायक है । शायद इसी के चलते इन्द्रविद्यावचस्पति पत्रकारिता को ‘पांचवां वेद’ मानते हैं । वे कहते हैं – “पत्रकारिता पांचवां वेद है, जिसके द्वारा हम ज्ञान-विज्ञान संबंधी बातों को जानकर अपना बंद मस्तिष्क खोलते हैं ।”1

वास्तव में पत्रकारिता भी साहित्य की भाँति समाज में चलने वाली गतिविधियों एवं हलचलों का दर्पण है । वह हमारे परिवेश में घट रही प्रत्येक सूचना को हम तक पहुंचाती है । देश-दुनिया में हो रहे नए प्रयोगों, कार्यों को हमें बताती है । इसी कारण विद्वानों ने पत्रकारिता को शीघ्रता में लिखा गया इतिहास भी कहा है । वस्तुतः आज की पत्रकारिता सूचनाओं और समाचारों का संकलन मात्र न होकर मानव जीवन के व्यापक परिदृश्य को अपने आप में समाहित किए हुए है । यह शाश्वत नैतिक मूल्यों, सांस्कृतिक मूल्यों को समसामयिक घटनाचक्र की कसौटी पर कसने का साधन बन गई है । वास्तव में पत्रकारिता जन-भावना की अभिव्यक्ति, सद्भावों की अनुभूति और नैतिकता की पीठिका है । संस्कृति, सभ्यता औस स्वतंत्रता की वाणी होने के साथ ही यह जीवन अभूतपूर्व क्रांति की अग्रदूतिका है । ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-संस्कृति, आशा-निराशा, संघर्ष-क्रांति, जय-पराजय, उत्थान-पतन आदि जीवन की विविध भावभूमियों की मनोहारी एवं यथार्थ छवि हम युगीन पत्रकारिता के दर्पण में कर सकते हैं ।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो. अंजन कुमार बनर्जी के शब्दों में “पत्रकारिता पूरे विश्व की ऐसी देन है जो सबमें दूर दृष्टि प्रदान करती है ।”2 वास्तव में प्रतिक्षण परिवर्तनशील जगत का दर्शन पत्रकारिता के द्वारा ही संभव है ।

पत्रकारिता की आवश्यकता एवं उद्भव पर गौर करें तो कहा जा सकता है कि जिस प्रकार ज्ञान-प्राप्ति की उत्कण्ठा, चिंतन एवं अभिव्यक्ति की आकांक्षा ने भाषा को जन्म दिया ।ठीक उसी प्रकार समाज में एक दूसरे का कुशल-क्षेम जानने की प्रबल इच्छा-शक्ति ने पत्रों के प्रकाशन को बढ़ावा दिया । पहले ज्ञान एवं सूचना की जो थाती मुट्ठी भर लोगों के पास कैद थी, वह आज पत्रकारिता के माध्यम से जन-जन तक पहुंच रही है । इस प्रकार पत्रकारिता हमारे समाज-जीवन में आज एक अनिवार्य अंग के रूप में स्वीकार्य है । उसकी प्रामाणिकता एवं विश्वसनीयता किसी अन्य व्यवसाय से ज्यादा है । शायद इसीलिए इस कार्य को कठिनतम कार्य माना गया । इस कार्य की चुनौती का अहसास प्रख्यात शायर अकबर इलाहाबादी को था, तभी वे लिखते हैं –

“खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो”3

पत्रकारिता का अर्थ –

सच कहें तो पत्रकारिता समाज को मार्ग दिखाने, सूचना देने एवं जागरूक बनाने का माध्यम है । ऐसे में उसकी जिम्मेदारी एवं जवाबदेही बढ़ जाती है । यह सही अर्थों में एक चुनौती भरा काम है ।

प्रख्यात लेखक-पत्रका डॉ. अर्जुन तिवारी ने इनसाइक्लोपीडिया आफ ब्रिटेनिका के आधार पर इसकी व्याख्या इस प्रकार की है – “पत्रकारिता के लिए ‘जर्नलिज्म’ शब्द व्यवहार में आता है । जो ‘जर्नल’ से निकला है । जिसका शाब्दिक अर्थ है – ‘दैनिक’। दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापों, सरकारी बैठकों का विवरण जर्नल में रहता था । 17वीं एवं 18 वीं शताब्दी में पीरियाडिकल के स्थान पर लैटिन शब्द ‘डियूनरल’ और ‘जर्नल’ शब्दों का प्रयोग आरंभ हुआ । 20वीं सदी में गम्भीर समालोचना एवं विद्वतापूर्ण प्रकाशन को इसके अन्तर्गत रका गया । इस प्रकार समाचारों का संकलन-प्रसारण, विज्ञापन की कला एवं पत्र का व्यावसायिक संगठन पत्रकारिता है । समसामयिक गतिविधियों के संचार से सम्बद्ध सभी साधन चाहे वह रेडियो हो या टेलीविज़न, इसी के अन्तर्गत समाहित हैं ।”4

एक अन्य संदर्भ के अनुसार ‘जर्नलिज्म’ शब्द फ्रैंच भाषा के शब्द ‘जर्नी’ से उपजा है । जिसका तात्पर्य है ‘प्रतिदिन के कार्यों अथवा घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करना ।’ पत्रकारिता मोटे तौर पर प्रतिदिन की घटनाओं का यथातथ्य विवरण प्रस्तुत करती है। पत्रकारिता वस्तुतः समाचारों के संकलन, चयन, विश्लेषण तथा सम्प्रेषण की प्रक्रिया है । पत्रकारिता अभिव्यक्ति की एक मनोरम कला है । इसका काम जनता एवं सत्ता के बीच एक संवाद-सेतु बनाना भी है । इन अर्थों में पत्रकारिता के फलित एव प्रभाव बहुत व्यापक है । पत्रकारिता का मूल उद्देश्य है सूचना देना, शिक्षित करना तथा मनोरंजन करना । इन तीनों उद्देश्यों में पत्रकारिता का सार-तत्व समाहित है । अपनी बहुमुखी प्रवृत्तियों के कारण पत्रकारिता व्यक्ति और समाज के जीवन को गहराई से प्रभावित करती है । पत्रकारिता देश की जनता की भावनाओं एवं चित्तवृत्तियों से साक्षात्कार करती है । सत्य का शोध एवं अन्वेषण पत्रकारिता की पहली शर्त है । इसके सही अर्थ को समझने का प्रयास करें तो अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध दर्ज करना इसकी महत्वपूर्ण मांग है ।

असहायों को सम्बल, पीड़ितों को सुख, अज्ञानियों को ज्ञान एवं मदोन्मत्त शासक को सद्बुद्धि देने वाली पत्रकारिता है, जो समाज-सेवा और विश्व बन्धुत्व की स्थापना में सक्षम है । इसीलिए जेम्स मैकडोनल्ड ने इसे एक वरेण्य जीवन-दर्शन के रूप में स्वीकारा है –

“पत्रकारिता को मैं रणभूमि से भी ज्यादा बड़ी चीज समझता हूँ । यह कोई पेशा नहीं वरन पेशे से ऊँची कोई चीज है । यह एक जीवन है, जिसे मैंने अपने को स्वेच्छापूर्वक समर्पित किया ।”5

पत्रकारिता की परिभाषाएं –

समाज एवं समय के परिप्रेक्ष्य में लोगों को सूचनाएं देकर उन्हें शिक्षित करना ही पत्रकारिता का ध्येय है । पत्रकारिता मात्र रूखी-सूखी सूचनाएं नहीं होती वरन लोगों को जागरूक बनाती है, उन्हें फैसले करने एवं सोचने लायक बनाती है । संवाद की एक स्वस्थ प्रक्रिया का आरंभ भी इसके द्वारा होता है । डॉ. अर्जुन तिवारी कहते हैं – “गीता में जगह-जगह पर शुभ-दृष्टि का प्रयोग है। यह शुभ-दृष्टि ही पत्रकारिता है । जिसमें गुणों को परखना तथा मंगलकारी तत्वों को प्रकाश में लाना सम्मिलित है । गांधीजी तो इसमें समदृष्टि को महत्व देते रहे । समाजहित में सम्यक प्रकाशन को पत्रकारिता कहा जा सकता है । असत्य, अशिव एवं असुंदर के खिलाफ ‘सत्यं शिवं सुन्दरम’ की शंखध्वनि ही पत्रकारिता है ।” इन सन्दर्भों के आलोक में विद्वानों की राय में पत्रकारिता की परिभाषाएं निम्न हैं –

“ज्ञान और विचार शब्दों तथा चित्रों के रूप में दूसरे तक पहुंचाना ही पत्रकला है । छपने वाले लेख-समाचार तैयार करना ही पत्रकारी नहीं गई है । आकर्षक शीर्षक देना, पृष्ठों का आकर्षक बनाव-ठनाव, जल्दी से जल्दी समाचार देने की त्वरा, देश-विदेश के प्रमुख उद्योग-धंधों के विज्ञापन प्राप्त करने की चतुराई, सुन्दर छपाई और पाठक के हाथ में सबसे जल्दी पत्र पहुंचा देने की त्वरा, ये सब पत्रकार कला के अंतर्गत रखे गए ।”6
– रामकृष्ण रघुनाथ खाडिलकर

“प्रकाशन, सम्पादन, लेखन एवं प्रसारणयुक्त समाचार माध्यम का व्यवसाय ही पत्रकारिता है ।”7
– न्यू वेबस्टर्स डिक्शनरी
“मैं समझता हूँ कि पत्रकारिता कला भी है, वृत्ति भी और जनसेवा भी । जब कोई यह नहीं समझता कि मेरा कर्तव्य अपने पत्र के द्वारा लोगों का ज्ञान बढ़ाना, उनका मार्गदर्शन करना है, तब तक से पत्रकारिता की चाहे जितनी ट्रेनिंग दी जाए, वह पूर्ण रूपेण पत्रकार नहीं बन सकता ।”8
– विखेम स्टीड
“सामयिक ज्ञान का व्यवसाय ही पत्रकारिता है । इसमें तथ्यों की प्रप्ति, मूल्यांकन एवं प्रस्तुतिकरण होता है ।”9
– सी.जी. मूलर

“पत्रकार का काम या व्यवसाय ही पत्रकारिता है ।”10
– हिन्दी शब्द सागर
“पत्रकारिता पत्र-पत्रिकाओं के लिए समाचार लेख आदि एकत्रित करने, सम्पादित करने, प्रकाशन आदेश देने का कार्य है ।”11
– डॉ.बद्रीनाथ कपूर

“पत्रकारिता एक पेशा नहीं है बल्कि यह तो जनता की सेवा का माध्यम है । पत्रकारों को केवल घटनाओं का विवरण ही पेश नहीं करना चाहिए, आम जनता के सामने उसका विश्लेषण भी करना चाहिए । पत्रकारों पर लोकतांत्रिक परम्पराओं की रक्षा करने और शांति एवं भाईचारा बनाए रखने की भी जिम्मेदारी आती है ।”12
– डॉ. शंकरदयाल शर्मा

पत्रकारिता की प्रकृति


सूचना, शिक्षा एवं मनोरंजन प्रदान करने के तीन उद्देश्यों में सम्पूर्ण पत्रकारिता का सार तत्व निहित है । पत्रकारिता व्यक्ति एवं समाज के बीच सतत संवाद का माध्यम है । अपनी बहुमुखी प्रवृत्तियों के चलते पत्रकारिता व्यक्ति एवं समाज को गहराई तक प्रभावित करती है । सत्य के शोध एवं अन्वेषण में पत्रकारिता एक सुखी, सम्पन्न एवं आत्मीय समाज बनाने की प्रेरणा से भरी-पूरी है । पत्रकारिता का मूल उद्देश्य ही अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध दर्ज करना है । सच्ची पत्रकारिता की प्रकृति व्यवस्था विरोधी होती है । वह साहित्य की भाँति लोक-मंगल एवं जनहित के लिए काम करती है। वह पाठकों में वैचारिक उत्तेजना जगाने का काम करती है । उन्हें रिक्त नहीं चोड़ती । पीड़ितों, वंचितों के दुख-दर्दों में आगे बढ़कर उनका सहायक बनना पत्रकारिता की प्रकृति है । जनकल्याण एवं विश्वबंधुत्व के भाव उसके मूल में हैं । गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है –

“कीरति भनति भूलि भलि सोई
सुरसरि सम सबकर हित होई ”

उपरोक्त कथन पत्रकारिता की मूल भावना को स्पष्ट करता है । भारतीय संदर्भों में पत्रकारिता लोकमंगल की भावना से अनुप्राणित है । वह समाज से लेना नहीं वरन उसे देना चाहती है । उसकी प्रकृति एक समाज सुधारक एवं सहयोगी की है । वह अन्याय, दमन से त्रस्त जनता को राहत देती है, जीने का हौसला देती है । सत्य की लड़ाई को धारदार बनाती है । बदलाव के लिए लड़ रहे लोगों की प्रेरणा बनती है । पत्रकारिता की इस प्रकृति को उसके तीन उद्देश्यों में समझा जा सकता है ।

1. सूचना देना
पत्रकारिता दुनिया-जहान में घट रही घटनाओं, बदलावों एवं हलचलों से लोगों को अवगत कराती है । इसके माध्यम से जनता को नित हो रहे परिवर्तनों की जानकारी मिलती रहती है । समाज के प्रत्येक वर्ग की रुचि के के लोगों के समाचार अखबार विविध पृष्ठों पर बिखरे होते हैं, लोग उनसे अपनी मनोनुकूल सूचनाएं प्राप्त करते हैं । इसके माध्यम से जनता को सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों की जानकारी भी मिलती रहती है । एक प्रकार से इससे पत्रकारिता जनहितों की संरक्षिका के रूप में सामने आई है ।

2. शिक्षित करना
सूचना के अलावा पत्रकारिता ‘लोक गुरू’ की भी भूमिका निभाती है । वह लोगों में तमाम सवालों पर जागरुकता लाने एवं जनमत बनाने का काम भी करती है । पत्रकारिता आम लोगों को उनके परिवेश के प्रति जागरुक बनाती है और उनकी विचार करने की शक्ति का पोषण करती है । पत्रकारों द्वारा तमाम माध्यमों से पहुंचाई गई बात का जनता पर सीधा असर पड़ता है । इससे पाठक यादर्शक अपनी मनोभूमि तैयार करता है । सम्पादकीय, लेखों, पाठकों के पत्र, परिचर्चाओं, साक्षात्कारों इत्यादि के प्रकाशन के माध्यम से जनता को सामयिक एवं महत्पूर्ण विषयों पर अखबार तथा लोगों की राय से रुपरू कराया जाता है । वैचारिक चेतना में उद्वेलन का काम भी पत्रकारिता बेहतर तरीके से करती नजर आती है । इस प्रकारपत्रकारिता जन शिक्षण का एक साधन है ।

3 मनोरंजन करना
समाचार पत्र, रेडियो एवं टीवी ज्ञान एवं सूचनाओं के अलावा मनोरंजन का भी विचार करते हैं । इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर आ रही विषय वस्तु तो प्रायः मनोरंजन प्रधान एवं रोचक होती है । पत्र-पत्रिकाएं भी पाठकों की मांग का विचार कर तमाम मनोरंजक एवं रोचक सामग्री का प्रकाशन करती हैं । मनोरंजक सामग्री स्वाभाविक तौर पर पाठकों को आकृष्ट करती है । इससे उक्त समाचार पत्र-पत्रिका की पठनीयता प्रभावित होती है । मनोरंजन के माध्यम से कई पत्रकार शिक्षा का संदेश भी देते हैं । अलग-अलग पाठक वर्ग काविचार कर भिन्न-भिन्न प्रकार की सामग्री पृष्टों पर दी जाती है । ताकि सभी आयु वर्ग के पाठकों को अखबार अपना लग सके । फीचर लेखों, कार्टून, व्यंग्य चित्रों, सिनेमा, बाल , पर्यावरण, वन्य पशु, रोचक-रोमांचक जानकारियों एवं जनरुचि से जुड़े विषयों पर पाठकों की रुचि का विचार कर सामग्री दी जाती है। वस्तुतः पत्रकारिता समाज का दर्पण है। उसमें समाज के प्रत्येक क्षेत्र में चलने वाली गतिविधि का सजीव चित्र उपस्थित होता है । वह घटना, घटना के कारणों एवं उसके भविष्य पर प्रकाश डालती है । वह बताती है कि समाज में परिवर्तन के कारण क्या हैं और उसके फलित क्या होंगे ? इस प्रकार पत्रकारिता का फलक बहुत व्यापाक होता है ।

पत्रकारिता का महत्व



पत्रकारिता का क्षेत्र एवं परिधि बहुत व्यापक है। उसेक किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता । जीवन के प्रत्येख क्षेत्र में हो रही हलचलों, संभावनाओं पर विचार कर एक नई दिशा देने का काम पत्रकारिता के क्षेत्र में आ जाता है । पत्रकारिता जीवन के प्रत्येक पहलू पर नजर रखती है । इन अर्थों में उसका क्षेत्र व्यापक है । एक पत्रकार के शब्दों में “समाचार पत्र जनता की संसद है, जिसका अधिवेशन सदैव चलता रहता है ।” इस समाचार पत्र रूपी संसद का कबी सत्रवासान नहीं होता । जिस प्रकार संसद में विभिन्न प्रकार की समस्याओ पर चर्चा की जाती है, विचार-विमर्श किया जाता है, उसी प्रकार समाचार-पत्रों का क्षेत्र भी व्यापक एवं बहुआयाम होता है । पत्रकारिता तमाम जनसमस्याओं एवं सवालों से जुड़ी होती है, समस्याओं को प्रसासन के सम्मुख प्रस्तुत कर उस पर बहस को प्रोत्साहित करती है । समाज जीवन के हर क्षेत्र में आज पत्रकारिता की महत्ता स्वीकारी जा रही है । आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, विज्ञान, कला सब क्षेत्र पत्रकारिता के दायरे में हैं । इन संदर्भों में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आर्थिक पत्रकारिता का महत्व खासा बढ़ गया है । नई आर्थिक नीतियों के प्रभावों तथा जीवन में कारोबारी दुनिया एवुं शेयर मार्केट के बढ़ते हस्तक्षेप ने इसका महत्व बढ़ा दिया है । तमाम प्रमुख पत्र संस्थानों ने इसी के चलते अपने आर्थिक प्रकाशन प्रारंभ कर दिए हैं । इकॉनॉमिक टाइम्स (टाइम्स अफ इंडिया), बिजनेस स्टैण्डर्ड (आनंद बाजार पत्रिका), फाइनेंशियल एक्सप्रेस (इंडियन एक्सप्रेस) के प्रकाशकों ने इस क्षेत्र में गंभीरता एवं क्रांति ला दी है । जन्मभूमि प्रकाशन ‘व्यापार’ नामक गुजराती पत्र ने अपने पाठक वर्ग में अच्छी पहचान बनाई है । अव वह हिंदी में भी अपना साप्ताहिक संस्करण प्रकाशित कर रहा है । हिंदी-अंग्रेजी में तमाम व्याप-पत्रिकाएं इकॉनॉमिस्ट, व्यापार भारती, व्यापार जगत, शेयर मार्केट, कैपिटल मार्केट, इन्वेस्टमेंट, मनी आदि नामों से आ रही हैं ।

अर्थव्यवस्था प्रधान युग होने के कारण प्रत्येक प्रमुख समाचार-पत्र दो से चार पृष्ठ आर्थिक गतिविधियों के लए आरक्षित कर रहा है । इसमें आर्थिक जगत से जुड़ी घटनाओं, कम्पनी समाचारों, शेयर मार्केट की सूचनाओं , सरकारी नीति में बदलावों, मुद्रा बाजार, सराफा बाजार एवं विविध मण्डियों से जुड़े समाचार छपते हैं । ऐसे में देश-विदेश के अर्थ जगत से जुड़ी प्रत्येक गतिविदि आर्थिक समाचारों एवं आर्थिक पत्रकारिता का हिस्सा बन गई हैं । राजनीतिक-सामाजिक परिवर्तनों के बाजार एवं अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेंगे इसकी व्याख्या भी आर्थिक पत्रकारिता का विषय क्षेत्र है ।

इसी प्रकार ग्रमीण क्षेत्रों की रिपोर्टिंग के संदर्भ में पत्रकारिता का महत्व बढ़ा है । भारत गावों का देश है । देश की अधिकांश आबादी गांवों मे रहती है । अतः देश के गांवों में रह रहे लाखों-करोड़ों देशवासियों की भावनाओं का विचार कर उनके योग्य एवं उनके क्षेत्र की सामग्री का प्रकासन पत्रों का नैतिक कर्तव्य है । एक परिभाषा के मुताबिक जिन समाचार-पत्रों में 40 प्रतिशत से ज्यादा सामग्री गांवों के बारे में, कृषि के बारे में, पशुपालन, बीज, खाद, कीटनाशक, पंचायती राज, सहकारिता के विषयों परहोगी उन्हीं समाचार पत्रों को ग्रमीण माना जाएगा ।

तमाम क्षेत्रीय-प्रांतीय अखबार आज अपने आंचलिक संस्करण निकाल रहे हैं, पर उनमें भी राजनीतिक खबरों, बयानों का बोलबाला रहता है । इसके बाद भी आंचलिक समाचारों के चलते पत्रकारिता का क्षेत्र व्यापक हुआ है और उसकी महत्ता बढ़ी है ।
पत्रकारिता के प्रारम्भिक दौर में घटना को यथातथ्य प्रस्तुत करना ही पर्याप्त माना जाता थआ । परिवर्तित परिस्तितियों में पाठक घटनाओं के मात्र प्रस्तुतीकरण से संतुष्ट नहीं होता । वह कुछ “और कुछ” भी जानना चाहता है । इसी “और” की संतुष्टि के लिए आज संवाददाता घटना की पृष्ठभूमि और कारणोंकी भी खोज करता है । पृष्ठभूमि के बाद वह समाचार का विश्लेषण भी करता है । इस विश्लेषणपरकता का कारण पाटक को घटना से जुड़े विविध मुद्दों का बई पता चल जाता है । टाइम्स आफ इंडिया आदि कुछ प्रमुख पत्र नियमित रूप से “समाचार विश्लेषण” जैसे स्तंभों का प्रकाशन भी कर रहे हैं । प्रेस स्वतंत्रता पर अमेरिका के प्रेस आयोग ने यह भी स्वीकार किया था कि अब समाचार के तथ्यों को सत्य रूप से रिपोर्ट करना ही पर्याप्त नहीं वरन् यह भी आवश्यक है कि तथ्य के सम्पूर्ण सत्य को भी प्रकट किया जाए।

पत्रकार का मुख्य कार्य अपने पाठकों को तथ्यों की सूचना देना है । जहां सम्भव हो वहां निष्कर्ष भी दिया जा सकता है। अपराध तथा राजनैतिक संवाददाताओं का यह मुख्य कार्य है । तीसरा एक मुख्य दायित्व प्रसार का है । आर्थिक-सामाजिक जीवन के बारे में तथ्यों का प्रस्तुतीकरण ही पर्याप्त नहीं वरन उनका प्रसार भी आवश्यक है । गम्भीर विकासात्मक समस्याओं से पाठकों को अवगत कराना भी आवश्यक है । पाठक को सोचने के लिए विवश कर पत्रकार का लेखन सम्भावित समाधानों की ओर भी संकेत करता है । विकासात्मक लेखन में शोध का भी पर्याप्त महत्व है ।

शुद्ध विकासात्मक लेखक के क्षेत्रों को वरिष्ठ पत्रकार राजीव शुक्ल ने 18 भागों में विभक्त किया है – उद्योग, कृषि, शिक्षा और साक्षरता, आर्थिक गतिविधियाँ, नीति और योजना, परिवहन, संचार, जनमाध्यम, ऊर्जा और ईंधन, श्रम व श्रमिक कल्याण, रोजगार, विज्ञान और तकनीक, रक्षा अनुसन्धान और उत्पाद तकनीक, परिवार नियोजन, स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाएं, शहरी विकास, ग्रमीण विकास, निर्माण और आवास, पर्यावरण और प्रदूषण ।

पत्रकारिता के बढ़ते महत्व के क्षेत्रों में आधुनिक समय मे संदर्भ पत्रकारिता अथवा संदर्भ सेवा का विशिष्ट स्थान है । संदर्भ सेवा का तात्पर्य संदर्भ सामग्री की उपलब्धता से है । सम्पादकीय लिखते समय किसी सामाजिक विषय पर टिप्पणी लिखने के लिए अथवा कोई लेख आदि तैयार करने क दृष्टि से कई बार विशेष संदर्भों की आवश्यकता होती है । ज्ञान-विज्ञान के विस्तार तता यांत्रिक युक की व्यवस्थाओं में कोई भी पत्रकार प्रत्येक विषय को स्मरण शक्ति के आधार पर नहीं लिख सकता । अतः पाठकों को सम्पूर्ण जानकारी देने के लिअ आवश्यक है कि पत्र-प्रतिष्ठान के पास अच्छा सन्दर्भ साहित्य संग्रहित हो । कश्मीरी लाल शर्मा ने “संदर्भ पत्रकारिता” विषयक लेख में सन्दर्भ सेवा के आठ वर्ग किए हैं – कतरन सेवा, संदर्भ ग्रंथ, लेख सूची, फोटो विभाग, पृष्ठभूमि विभाग, रिपोर्ट विभाग, सामान्य पुस्तकों का विबाग और भण्डार विभाग ।

संसद तथा विधान-मण्डल समाचार-पत्रों के लिए प्रमुख स्रोत हैं । इन सदनों की कार्यवाही के दौरान समाचार-पत्रों के पृष्ठ संसदीय समाचारों से भरे रहते हैं । संसद तथा विधानसभा की कार्यवाही में आमजन की विशेष रुचि रहती है । देश तथा राज्य की राजनीतिक, सामाजिक आदि गतिविधियां यहां की कार्यवाही से प्रकट होती रहती हैं, जिसे समाचार-पत्र ही जनता तक पहुंचा कर उनका पथ-प्रदर्शन करते हैं ।

संसदीय कार्यवाही की रिपोर्टिंग के समय विशेष दक्षता और सावधानी की आवश्यकता है । इनसे संबंधित कानूनों तथा संसदीय विशेषाधिकार की जानकारी होना प्रत्येक पत्रकार के लिए आवश्यक है ।

खेलों का मानव जीवन से कापी पुराना संबंध हे । मनोरंजन तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से भी मनुष्य ने इनके महत्व को समझा है । आधुनिक विश्व में विभिन्न देशों के मध्य होने वाली प्रतियोगिताओं के कारण कई खेल व खिलाड़ी लोकप्रिर होने लगे हैं । ओलम्पिक तथा एशियाई आदि अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के कारण भी खेलों के प्रति रुचि में विकास हुआ।

शायद ही कोई दिन ऐसा हो जब राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी न किसी प्रतियोगिता का आयोजन नहीं हो रहा है । अतः खेलों के प्रति जन-जन की रुचि को देखते हुए पत्र-पत्रिकाओं में खेलों के समाचार तथा उनसे संबंधित नियमित स्तंभों का प्रकाशन किया जाता है । प्रायः सभी प्रमुख समाचार पत्र पूरा एक पृष्ठ खेल जगत की हलचलों को देते हैं ।

आजकल तो खेल खिलाड़ी, खेल युग, खेल हलचल, स्पोर्टस वीक, क्रिकेट सम्राट आदि अनेक पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं जो विश्व भर की खेल हलचलों को अपने पत्र में स्थान देती हैं ।

पत्रकारिता का महत्व छिपे तथ्यों को उजागर करने में स्वीकारा गया है । वह तमाम क्षेत्र की विशिष्ट सूचनाएं जनता को बताती हैं । जब जहाँ कोई व्यक्ति या अधिकारी कोई तथ्य छिपाना चाहता हो अथवा कोई तथ्य अनुद्घाटित हो, वहीं अन्वेषणात्मक पत्रकारिता प्रारम्भ हो जाती है । उस समाचार या तथ्य को प्रकाश में लाने के लिए पत्रकार तत्पर हो जाता है। अमेरिका का “वाटरगेट कांड” इस दृष्टि से उल्लेखनीय है । इस काण्ड के चलते सत्ता परिवर्तन के बाद अन्वेषणात्मक पत्रकारिता को विशेष प्रोत्साहन तथा मान्यता मिली ।

यदि अन्वेषणात्मक पत्रकारिता सही उद्देश्यों से अनुप्रमाणित होकर की जाए तो यह समाज और राष्ट्र के लिए बहुत बड़ी सेवा हो सकती है । यदि चरित्र-हनन तथा किसी व्यक्ति या संस्था को अपमानित या बदनाम करने की नीयत स ऐसी पत्रकारिता की जाएगी तो वह “पीत पत्रकारिता”की श्रेणी में आ जाती है ।

फिल्में आज हमारे समाज को बहुत प्रभावित कर रही हैं । अतः फिल्मी पत्र-पत्रिकाएं भी पाठक वर्गों में खासी लोकप्रिय हैं । फिल्मों की समीक्षाएं, फिल्मी कलाकारों के साक्षात्कार, फिल्म निर्माण से जुड़े कलाकारों के साक्षात्कार, फिल्म के विविध कलात्मक एवं तकनीकी पक्षों पर टिप्पणियां, फिल्मी पत्रकारिता का ही हिस्सा हैं । सम्प्रति हिंदी-अंग्रेजी सहित सभी प्रमुख भाषाओं में फिल्मी पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं । प्रत्येक प्रमुख समाचार पत्र फिल्मों पर केंद्रित रंगीन परिशिष्ट या सामग्री प्रकाशित करता ही है । फिल्मी पत्रकारिता के क्षेत्र में विनोद भारद्वाज, विनोद तिवारी, प्रयाग शुक्ल, राजा दुबे, जयसिंह रघुवंशी जय, राम सिंह ठाकुर, विजय अग्रवाल, ब्रजेश्वर मदान, जयप्रकाश चौकसे, अजय ब्रम्हात्मज, जांद खां रहमानी, हेमंत शुक्ल, श्रीश, श्रीराम ताम्रकार जैसे तमाम पत्रकार गंभीरता के साथ काम कर रहे हैं । इसके अलावा सिने स्टार, जी स्टार, स्टार डस्ट, फिल्मी कलियां, मायापुरी, स्क्रीन, पटकथा, फिल्म फेयर जैसी संपूर्ण फिल्म पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं । इसके अलावा हिंदी की सभी प्रमुख पत्रिकाएं इण्डिया टुजे, आउटलुक, धर्मयुग, सरिता, मुक्ता आदि प्रत्येक अंक में फिल्मों पर सामग्री प्रकाशित करती हैं । सारे प्रमुख समाचार पत्रों में सिनेमा पर विविध सामग्री प्रकासित होती है । इसके चलते फिल्म पत्रकारिता, पत्रकारिता का एक प्रमुख क्षेत्र बनकर उभरी है । इसने पत्रकारिता के महत्व एवं लोकप्रियता में वृद्धि की है ।

पत्रकारिता के महद्व को आज इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों की पत्रकारिता ने बहुत बढ़ा दिया है । इन्होंने समय एवं स्तान की सीमा को चुनौती देकर “सूचना विस्फोट” का युग ला दिया है । इस संदर्भ मे रेडियो पत्रकारिता का बहुत महत्व है । इनके महत्व क्रम में आकाशवाणी के वे कार्यक्रम महत्वपूर्ण हैं, जिनमें समाचार तत्व अधिक रहता है । आकाशवाणी के इन समाचार कार्यक्रमों को तैयार करने में आकाशवाणी का समाचार सेवा प्रभाग सक्रिय रहता है । इस प्रभाग का कार्य समाचारों का संकलन और प्रसारण है । आकाशवाणी के स्थायी और अंशकालिक संवाददाता पूरे देश में हैं । समाचार सेवा प्रभाग प्रतिदिन अपनी गृह, प्रादेशिक और वैदेशिक सेवाओं में 36 घंटों से भी अधिक समय में 273 समाचार बुलेटिन प्रसारित करता है । विदेश के प्रमुख शहरों में भी संवाददाता हैं, जो वहां की गतिविधियां प्रेषित करते हैं । प्रत्येक घंटे पर समाचार बुलेटिन के प्रसारण से आकाशवाणी जन-मानस को तुष्ट करती है । ‘समाचार दर्शन’, समाचार पत्रों से, विधानमण्डल समीक्षा, संसद समीक्षा, सामयिकि, जिले और राज्यों की चिट्ठी, रेडियो न्यूज़रील आदि कार्यक्रमों का प्रसारण इसी पत्रकारिता का अंग है । इसके अलावा सामयिक विषयों पर बहस, परिचर्चा एवं साक्षात्कारों का प्रसारण करके वह अपने श्रोताओं की मानसिक भूख शांत करता है ।

रेडियो पत्रकारिता आज एक विशेषज्ञतापूर्ण विधा है । जिसमें पत्रकार-सम्पादक को अपने कार्य में सशक्त भूमिका का निर्वहन करना पड़ता है। सीमित अवधि में समाचारों की प्रस्तुति एवं चयन रेडियो पत्रकार की दक्षता को साबित करते हैं । विविध समाचार एवं जानकारी प्रधान कार्यक्रमों के माध्यम से आकाशवाणी समग्र विकास की प्रक्रिया को बढ़ाने मे अग्रसर है ।

इसी प्रकार टेलीविज़न पत्रकारिता का फलक आज बहुत विस्तृत हो गया है । उपग्रह चैनलों की बढ़ती भीड़ के बीच यह एक प्रतिस्पर्धा एवं कौशल का क्षेत्र बन गया है । आधुनिक संचार-क्रांति में निश्चय ही इसकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता । इसके माध्यम से हमारे जीवन में सूचनाओं का विस्फोट हो रहा है । ग्लोबल विलेज (वैश्विक ग्राम) की कल्पना को साकार रूप देने में यह माध्यम सबसे प्रभावी हुआ । दृश्य एवं श्रव्य होने के कारण इसकी स्वीकार्यता एवं विश्वसनीयता अन्य माध्यमों से ज्यादा है । भारत में 1959 ई. में आरंभ दूरदर्शन की विकास यात्रा ने आज सभी संचार माध्यमों की पीछे छोड़ दिया है । दूरदर्शन पत्रकारिता में समाचार संकलन, लेखन एवं प्रस्तुतिकरण संबंधी विशिष्ट क्षमता अपेक्षित होती है । दूरदर्शन संवाददाता घटना का चल-चित्रांकन करता है तथा वह परिचयात्मक विवरण हेतु भाषागत सामर्थ्य एवं वाणी की विशिष्ट शैली का मर्मज्ञ होता है । विविध स्रोतों से प्राप्त समाचारों के सम्पादन का उत्तरदायित्व समाचार संपादक का होता है । वह समाचारों को महत्वक्रम के अनुसार क्रमबद्ध कर सम्पादित करता है तथा से समाचार वाचक के समक्ष प्रस्तुत करने योग्य बनाता है । चित्रात्मकता दूरदर्शन का प्राणतत्व है । यह वही तत्व है जो समाचार की विश्वसनीयता एवं स्वीकार्यता को बढ़ाता है । आज तमाम निजी टीवी चैनलों में समाचार एवं सूचना प्रधान कार्यक्रमों की होड़ लगी है । सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक सवालों पर परिचर्चाओं एवं बहस का आयोजन होता रहतै है । प्रतिस्पर्धा के वातावरण से टेलीविज़न की पत्रकारिता में क्रांति आ गई है और उसकी गुणवत्ता में निरंतर सुधार आ रहा है ।

इस प्रकार हम देखते हैं वर्तमान परिवेश में जहां प्रेस का दायरा विस्तृत हुआ हैं, वहीं उसकी महत्ता भी बढ़ी है । वह लोगों के होने और जीने में सहायक बन गया है । देश में जब तक लोकतंत्र रहेगा, उसकी प्राणवत्ता रहेगी, पत्रकारिता का भविष्य उज्ज्वल रहेगा । आज क दर में बढ़ रहे विश्वनीयता के संकट, व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा एवं तमाम दबावों के बावजूद प्रेस का वजूद न तो घटा है, न कम हुआ है । उसकी स्वीकार्यता निरंतर बड़ रही है, पाठकीयता बढ़ रही है, विविध रुचि की सामग्री आ रही है और अखबारो की संख्या में भी वृद्धि हो रही है । इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता के क्षेत्र में तो क्रांति सी हो गई है ।

पतन क्योंकि मूल्यों के स्तर पर हुआ है । अतः उसके प्रभावों से पत्रकारिता अलग नहीं है । पत्रकारिता साहित्य एवं सुरुचि के संस्कार आज विदा होते दिख रहे हैं । इसके बावजूद तमाम लोग ऐसे भी हैं, जो भाषा एवं अखबार की सामाजिक जिम्मेदारी को लेकर काफी सचेत हैं । संस्थाओं की पत्रिकाएं बंद होने से एक बार लगा पत्रकारिता की नींव डगमगा रही है। पर उनके समानांतर क्षेत्रीय अखबारों की सत्ता एक बड़ी शक्ति के रूप में सामने आई है । बाहरी-भीतरी खतरे वं प्रभावों के बावजूद हमारी पत्रकारिता का प्रगति रथ सदैव बढ़ता नजर आया है । पत्रकारिता ने हर संकट को पार किया है, वह इस संक्रमण से भी ज्यादा ऊर्जावान एवं ज्यादा तेजस्वी बनकर सामने आएगी, बशर्ते वह अपनी भूमिका ‘जनपक्ष’ की बनाए और संकट मोल लेने का साहस पाले । पत्रकारिता से आज भी सामान्य जन की उम्मीदें मरी नहीं हैं ।


संदर्भ –
1. आधुनिक पत्रकारिता – डॉ. अर्जुन तिवारी (पृष्ठ 1)
2. आधुनिक पत्रकारिता – डॉ. अर्जुन तिवारी (पृष्ठ – प्रस्तावना से)
3. आधुनिक पत्रकारिता – डॉ. अर्जुन तिवारी (पृष्ठ – प्रस्तावना से)
4. आधुनिक पत्रकारिता – डॉ. अर्जुन तिवारी (पृष्ठ – प्रस्तावना से)
5. आधुनिक पत्रकारिता – डॉ. अर्जुन तिवारी (पृष्ठ – प्रस्तावना से)
6. आधुनिक पत्रकार कला – रा.र. खाडिलकर (पृष्ठ – 2)
7. पत्रकारिता का इतिहास एवं जनसंचार माध्यम – संजीव भानावत (पृष्ठ – 3)
8. पत्रकारिता का इतिहास एवं जनसंचार माध्यम – संजीव भानावत (पृष्ठ – 3)
9. पत्रकारिता का इतिहास एवं जनसंचार माध्यम – संजीव भानावत (पृष्ठ – 3)
10. हिंदी शब्द सागर, छठा भाग, (पृष्ठ – 2798)
11. वैज्ञानिक परिभाषा कोष (पृष्ठ – 117)
12. आधुनिक पत्रकारिता – डॉ. अर्जुन तिवारी