पत्रकारिता का क्षेत्र एवं परिधि बहुत व्यापक है। उसेक किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता । जीवन के प्रत्येख क्षेत्र में हो रही हलचलों, संभावनाओं पर विचार कर एक नई दिशा देने का काम पत्रकारिता के क्षेत्र में आ जाता है । पत्रकारिता जीवन के प्रत्येक पहलू पर नजर रखती है । इन अर्थों में उसका क्षेत्र व्यापक है । एक पत्रकार के शब्दों में “समाचार पत्र जनता की संसद है, जिसका अधिवेशन सदैव चलता रहता है ।” इस समाचार पत्र रूपी संसद का कबी सत्रवासान नहीं होता । जिस प्रकार संसद में विभिन्न प्रकार की समस्याओ पर चर्चा की जाती है, विचार-विमर्श किया जाता है, उसी प्रकार समाचार-पत्रों का क्षेत्र भी व्यापक एवं बहुआयाम होता है । पत्रकारिता तमाम जनसमस्याओं एवं सवालों से जुड़ी होती है, समस्याओं को प्रसासन के सम्मुख प्रस्तुत कर उस पर बहस को प्रोत्साहित करती है । समाज जीवन के हर क्षेत्र में आज पत्रकारिता की महत्ता स्वीकारी जा रही है । आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, विज्ञान, कला सब क्षेत्र पत्रकारिता के दायरे में हैं । इन संदर्भों में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आर्थिक पत्रकारिता का महत्व खासा बढ़ गया है । नई आर्थिक नीतियों के प्रभावों तथा जीवन में कारोबारी दुनिया एवुं शेयर मार्केट के बढ़ते हस्तक्षेप ने इसका महत्व बढ़ा दिया है । तमाम प्रमुख पत्र संस्थानों ने इसी के चलते अपने आर्थिक प्रकाशन प्रारंभ कर दिए हैं । इकॉनॉमिक टाइम्स (टाइम्स अफ इंडिया), बिजनेस स्टैण्डर्ड (आनंद बाजार पत्रिका), फाइनेंशियल एक्सप्रेस (इंडियन एक्सप्रेस) के प्रकाशकों ने इस क्षेत्र में गंभीरता एवं क्रांति ला दी है । जन्मभूमि प्रकाशन ‘व्यापार’ नामक गुजराती पत्र ने अपने पाठक वर्ग में अच्छी पहचान बनाई है । अव वह हिंदी में भी अपना साप्ताहिक संस्करण प्रकाशित कर रहा है । हिंदी-अंग्रेजी में तमाम व्याप-पत्रिकाएं इकॉनॉमिस्ट, व्यापार भारती, व्यापार जगत, शेयर मार्केट, कैपिटल मार्केट, इन्वेस्टमेंट, मनी आदि नामों से आ रही हैं ।
अर्थव्यवस्था प्रधान युग होने के कारण प्रत्येक प्रमुख समाचार-पत्र दो से चार पृष्ठ आर्थिक गतिविधियों के लए आरक्षित कर रहा है । इसमें आर्थिक जगत से जुड़ी घटनाओं, कम्पनी समाचारों, शेयर मार्केट की सूचनाओं , सरकारी नीति में बदलावों, मुद्रा बाजार, सराफा बाजार एवं विविध मण्डियों से जुड़े समाचार छपते हैं । ऐसे में देश-विदेश के अर्थ जगत से जुड़ी प्रत्येक गतिविदि आर्थिक समाचारों एवं आर्थिक पत्रकारिता का हिस्सा बन गई हैं । राजनीतिक-सामाजिक परिवर्तनों के बाजार एवं अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेंगे इसकी व्याख्या भी आर्थिक पत्रकारिता का विषय क्षेत्र है ।
इसी प्रकार ग्रमीण क्षेत्रों की रिपोर्टिंग के संदर्भ में पत्रकारिता का महत्व बढ़ा है । भारत गावों का देश है । देश की अधिकांश आबादी गांवों मे रहती है । अतः देश के गांवों में रह रहे लाखों-करोड़ों देशवासियों की भावनाओं का विचार कर उनके योग्य एवं उनके क्षेत्र की सामग्री का प्रकासन पत्रों का नैतिक कर्तव्य है । एक परिभाषा के मुताबिक जिन समाचार-पत्रों में 40 प्रतिशत से ज्यादा सामग्री गांवों के बारे में, कृषि के बारे में, पशुपालन, बीज, खाद, कीटनाशक, पंचायती राज, सहकारिता के विषयों परहोगी उन्हीं समाचार पत्रों को ग्रमीण माना जाएगा ।
तमाम क्षेत्रीय-प्रांतीय अखबार आज अपने आंचलिक संस्करण निकाल रहे हैं, पर उनमें भी राजनीतिक खबरों, बयानों का बोलबाला रहता है । इसके बाद भी आंचलिक समाचारों के चलते पत्रकारिता का क्षेत्र व्यापक हुआ है और उसकी महत्ता बढ़ी है ।
पत्रकारिता के प्रारम्भिक दौर में घटना को यथातथ्य प्रस्तुत करना ही पर्याप्त माना जाता थआ । परिवर्तित परिस्तितियों में पाठक घटनाओं के मात्र प्रस्तुतीकरण से संतुष्ट नहीं होता । वह कुछ “और कुछ” भी जानना चाहता है । इसी “और” की संतुष्टि के लिए आज संवाददाता घटना की पृष्ठभूमि और कारणोंकी भी खोज करता है । पृष्ठभूमि के बाद वह समाचार का विश्लेषण भी करता है । इस विश्लेषणपरकता का कारण पाटक को घटना से जुड़े विविध मुद्दों का बई पता चल जाता है । टाइम्स आफ इंडिया आदि कुछ प्रमुख पत्र नियमित रूप से “समाचार विश्लेषण” जैसे स्तंभों का प्रकाशन भी कर रहे हैं । प्रेस स्वतंत्रता पर अमेरिका के प्रेस आयोग ने यह भी स्वीकार किया था कि अब समाचार के तथ्यों को सत्य रूप से रिपोर्ट करना ही पर्याप्त नहीं वरन् यह भी आवश्यक है कि तथ्य के सम्पूर्ण सत्य को भी प्रकट किया जाए।
पत्रकार का मुख्य कार्य अपने पाठकों को तथ्यों की सूचना देना है । जहां सम्भव हो वहां निष्कर्ष भी दिया जा सकता है। अपराध तथा राजनैतिक संवाददाताओं का यह मुख्य कार्य है । तीसरा एक मुख्य दायित्व प्रसार का है । आर्थिक-सामाजिक जीवन के बारे में तथ्यों का प्रस्तुतीकरण ही पर्याप्त नहीं वरन उनका प्रसार भी आवश्यक है । गम्भीर विकासात्मक समस्याओं से पाठकों को अवगत कराना भी आवश्यक है । पाठक को सोचने के लिए विवश कर पत्रकार का लेखन सम्भावित समाधानों की ओर भी संकेत करता है । विकासात्मक लेखन में शोध का भी पर्याप्त महत्व है ।
शुद्ध विकासात्मक लेखक के क्षेत्रों को वरिष्ठ पत्रकार राजीव शुक्ल ने 18 भागों में विभक्त किया है – उद्योग, कृषि, शिक्षा और साक्षरता, आर्थिक गतिविधियाँ, नीति और योजना, परिवहन, संचार, जनमाध्यम, ऊर्जा और ईंधन, श्रम व श्रमिक कल्याण, रोजगार, विज्ञान और तकनीक, रक्षा अनुसन्धान और उत्पाद तकनीक, परिवार नियोजन, स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाएं, शहरी विकास, ग्रमीण विकास, निर्माण और आवास, पर्यावरण और प्रदूषण ।
पत्रकारिता के बढ़ते महत्व के क्षेत्रों में आधुनिक समय मे संदर्भ पत्रकारिता अथवा संदर्भ सेवा का विशिष्ट स्थान है । संदर्भ सेवा का तात्पर्य संदर्भ सामग्री की उपलब्धता से है । सम्पादकीय लिखते समय किसी सामाजिक विषय पर टिप्पणी लिखने के लिए अथवा कोई लेख आदि तैयार करने क दृष्टि से कई बार विशेष संदर्भों की आवश्यकता होती है । ज्ञान-विज्ञान के विस्तार तता यांत्रिक युक की व्यवस्थाओं में कोई भी पत्रकार प्रत्येक विषय को स्मरण शक्ति के आधार पर नहीं लिख सकता । अतः पाठकों को सम्पूर्ण जानकारी देने के लिअ आवश्यक है कि पत्र-प्रतिष्ठान के पास अच्छा सन्दर्भ साहित्य संग्रहित हो । कश्मीरी लाल शर्मा ने “संदर्भ पत्रकारिता” विषयक लेख में सन्दर्भ सेवा के आठ वर्ग किए हैं – कतरन सेवा, संदर्भ ग्रंथ, लेख सूची, फोटो विभाग, पृष्ठभूमि विभाग, रिपोर्ट विभाग, सामान्य पुस्तकों का विबाग और भण्डार विभाग ।
संसद तथा विधान-मण्डल समाचार-पत्रों के लिए प्रमुख स्रोत हैं । इन सदनों की कार्यवाही के दौरान समाचार-पत्रों के पृष्ठ संसदीय समाचारों से भरे रहते हैं । संसद तथा विधानसभा की कार्यवाही में आमजन की विशेष रुचि रहती है । देश तथा राज्य की राजनीतिक, सामाजिक आदि गतिविधियां यहां की कार्यवाही से प्रकट होती रहती हैं, जिसे समाचार-पत्र ही जनता तक पहुंचा कर उनका पथ-प्रदर्शन करते हैं ।
संसदीय कार्यवाही की रिपोर्टिंग के समय विशेष दक्षता और सावधानी की आवश्यकता है । इनसे संबंधित कानूनों तथा संसदीय विशेषाधिकार की जानकारी होना प्रत्येक पत्रकार के लिए आवश्यक है ।
खेलों का मानव जीवन से कापी पुराना संबंध हे । मनोरंजन तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से भी मनुष्य ने इनके महत्व को समझा है । आधुनिक विश्व में विभिन्न देशों के मध्य होने वाली प्रतियोगिताओं के कारण कई खेल व खिलाड़ी लोकप्रिर होने लगे हैं । ओलम्पिक तथा एशियाई आदि अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के कारण भी खेलों के प्रति रुचि में विकास हुआ।
शायद ही कोई दिन ऐसा हो जब राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी न किसी प्रतियोगिता का आयोजन नहीं हो रहा है । अतः खेलों के प्रति जन-जन की रुचि को देखते हुए पत्र-पत्रिकाओं में खेलों के समाचार तथा उनसे संबंधित नियमित स्तंभों का प्रकाशन किया जाता है । प्रायः सभी प्रमुख समाचार पत्र पूरा एक पृष्ठ खेल जगत की हलचलों को देते हैं ।
आजकल तो खेल खिलाड़ी, खेल युग, खेल हलचल, स्पोर्टस वीक, क्रिकेट सम्राट आदि अनेक पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं जो विश्व भर की खेल हलचलों को अपने पत्र में स्थान देती हैं ।
पत्रकारिता का महत्व छिपे तथ्यों को उजागर करने में स्वीकारा गया है । वह तमाम क्षेत्र की विशिष्ट सूचनाएं जनता को बताती हैं । जब जहाँ कोई व्यक्ति या अधिकारी कोई तथ्य छिपाना चाहता हो अथवा कोई तथ्य अनुद्घाटित हो, वहीं अन्वेषणात्मक पत्रकारिता प्रारम्भ हो जाती है । उस समाचार या तथ्य को प्रकाश में लाने के लिए पत्रकार तत्पर हो जाता है। अमेरिका का “वाटरगेट कांड” इस दृष्टि से उल्लेखनीय है । इस काण्ड के चलते सत्ता परिवर्तन के बाद अन्वेषणात्मक पत्रकारिता को विशेष प्रोत्साहन तथा मान्यता मिली ।
यदि अन्वेषणात्मक पत्रकारिता सही उद्देश्यों से अनुप्रमाणित होकर की जाए तो यह समाज और राष्ट्र के लिए बहुत बड़ी सेवा हो सकती है । यदि चरित्र-हनन तथा किसी व्यक्ति या संस्था को अपमानित या बदनाम करने की नीयत स ऐसी पत्रकारिता की जाएगी तो वह “पीत पत्रकारिता”की श्रेणी में आ जाती है ।
फिल्में आज हमारे समाज को बहुत प्रभावित कर रही हैं । अतः फिल्मी पत्र-पत्रिकाएं भी पाठक वर्गों में खासी लोकप्रिय हैं । फिल्मों की समीक्षाएं, फिल्मी कलाकारों के साक्षात्कार, फिल्म निर्माण से जुड़े कलाकारों के साक्षात्कार, फिल्म के विविध कलात्मक एवं तकनीकी पक्षों पर टिप्पणियां, फिल्मी पत्रकारिता का ही हिस्सा हैं । सम्प्रति हिंदी-अंग्रेजी सहित सभी प्रमुख भाषाओं में फिल्मी पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं । प्रत्येक प्रमुख समाचार पत्र फिल्मों पर केंद्रित रंगीन परिशिष्ट या सामग्री प्रकाशित करता ही है । फिल्मी पत्रकारिता के क्षेत्र में विनोद भारद्वाज, विनोद तिवारी, प्रयाग शुक्ल, राजा दुबे, जयसिंह रघुवंशी जय, राम सिंह ठाकुर, विजय अग्रवाल, ब्रजेश्वर मदान, जयप्रकाश चौकसे, अजय ब्रम्हात्मज, जांद खां रहमानी, हेमंत शुक्ल, श्रीश, श्रीराम ताम्रकार जैसे तमाम पत्रकार गंभीरता के साथ काम कर रहे हैं । इसके अलावा सिने स्टार, जी स्टार, स्टार डस्ट, फिल्मी कलियां, मायापुरी, स्क्रीन, पटकथा, फिल्म फेयर जैसी संपूर्ण फिल्म पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं । इसके अलावा हिंदी की सभी प्रमुख पत्रिकाएं इण्डिया टुजे, आउटलुक, धर्मयुग, सरिता, मुक्ता आदि प्रत्येक अंक में फिल्मों पर सामग्री प्रकाशित करती हैं । सारे प्रमुख समाचार पत्रों में सिनेमा पर विविध सामग्री प्रकासित होती है । इसके चलते फिल्म पत्रकारिता, पत्रकारिता का एक प्रमुख क्षेत्र बनकर उभरी है । इसने पत्रकारिता के महत्व एवं लोकप्रियता में वृद्धि की है ।
पत्रकारिता के महद्व को आज इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों की पत्रकारिता ने बहुत बढ़ा दिया है । इन्होंने समय एवं स्तान की सीमा को चुनौती देकर “सूचना विस्फोट” का युग ला दिया है । इस संदर्भ मे रेडियो पत्रकारिता का बहुत महत्व है । इनके महत्व क्रम में आकाशवाणी के वे कार्यक्रम महत्वपूर्ण हैं, जिनमें समाचार तत्व अधिक रहता है । आकाशवाणी के इन समाचार कार्यक्रमों को तैयार करने में आकाशवाणी का समाचार सेवा प्रभाग सक्रिय रहता है । इस प्रभाग का कार्य समाचारों का संकलन और प्रसारण है । आकाशवाणी के स्थायी और अंशकालिक संवाददाता पूरे देश में हैं । समाचार सेवा प्रभाग प्रतिदिन अपनी गृह, प्रादेशिक और वैदेशिक सेवाओं में 36 घंटों से भी अधिक समय में 273 समाचार बुलेटिन प्रसारित करता है । विदेश के प्रमुख शहरों में भी संवाददाता हैं, जो वहां की गतिविधियां प्रेषित करते हैं । प्रत्येक घंटे पर समाचार बुलेटिन के प्रसारण से आकाशवाणी जन-मानस को तुष्ट करती है । ‘समाचार दर्शन’, समाचार पत्रों से, विधानमण्डल समीक्षा, संसद समीक्षा, सामयिकि, जिले और राज्यों की चिट्ठी, रेडियो न्यूज़रील आदि कार्यक्रमों का प्रसारण इसी पत्रकारिता का अंग है । इसके अलावा सामयिक विषयों पर बहस, परिचर्चा एवं साक्षात्कारों का प्रसारण करके वह अपने श्रोताओं की मानसिक भूख शांत करता है ।
रेडियो पत्रकारिता आज एक विशेषज्ञतापूर्ण विधा है । जिसमें पत्रकार-सम्पादक को अपने कार्य में सशक्त भूमिका का निर्वहन करना पड़ता है। सीमित अवधि में समाचारों की प्रस्तुति एवं चयन रेडियो पत्रकार की दक्षता को साबित करते हैं । विविध समाचार एवं जानकारी प्रधान कार्यक्रमों के माध्यम से आकाशवाणी समग्र विकास की प्रक्रिया को बढ़ाने मे अग्रसर है ।
इसी प्रकार टेलीविज़न पत्रकारिता का फलक आज बहुत विस्तृत हो गया है । उपग्रह चैनलों की बढ़ती भीड़ के बीच यह एक प्रतिस्पर्धा एवं कौशल का क्षेत्र बन गया है । आधुनिक संचार-क्रांति में निश्चय ही इसकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता । इसके माध्यम से हमारे जीवन में सूचनाओं का विस्फोट हो रहा है । ग्लोबल विलेज (वैश्विक ग्राम) की कल्पना को साकार रूप देने में यह माध्यम सबसे प्रभावी हुआ । दृश्य एवं श्रव्य होने के कारण इसकी स्वीकार्यता एवं विश्वसनीयता अन्य माध्यमों से ज्यादा है । भारत में 1959 ई. में आरंभ दूरदर्शन की विकास यात्रा ने आज सभी संचार माध्यमों की पीछे छोड़ दिया है । दूरदर्शन पत्रकारिता में समाचार संकलन, लेखन एवं प्रस्तुतिकरण संबंधी विशिष्ट क्षमता अपेक्षित होती है । दूरदर्शन संवाददाता घटना का चल-चित्रांकन करता है तथा वह परिचयात्मक विवरण हेतु भाषागत सामर्थ्य एवं वाणी की विशिष्ट शैली का मर्मज्ञ होता है । विविध स्रोतों से प्राप्त समाचारों के सम्पादन का उत्तरदायित्व समाचार संपादक का होता है । वह समाचारों को महत्वक्रम के अनुसार क्रमबद्ध कर सम्पादित करता है तथा से समाचार वाचक के समक्ष प्रस्तुत करने योग्य बनाता है । चित्रात्मकता दूरदर्शन का प्राणतत्व है । यह वही तत्व है जो समाचार की विश्वसनीयता एवं स्वीकार्यता को बढ़ाता है । आज तमाम निजी टीवी चैनलों में समाचार एवं सूचना प्रधान कार्यक्रमों की होड़ लगी है । सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक सवालों पर परिचर्चाओं एवं बहस का आयोजन होता रहतै है । प्रतिस्पर्धा के वातावरण से टेलीविज़न की पत्रकारिता में क्रांति आ गई है और उसकी गुणवत्ता में निरंतर सुधार आ रहा है ।
इस प्रकार हम देखते हैं वर्तमान परिवेश में जहां प्रेस का दायरा विस्तृत हुआ हैं, वहीं उसकी महत्ता भी बढ़ी है । वह लोगों के होने और जीने में सहायक बन गया है । देश में जब तक लोकतंत्र रहेगा, उसकी प्राणवत्ता रहेगी, पत्रकारिता का भविष्य उज्ज्वल रहेगा । आज क दर में बढ़ रहे विश्वनीयता के संकट, व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा एवं तमाम दबावों के बावजूद प्रेस का वजूद न तो घटा है, न कम हुआ है । उसकी स्वीकार्यता निरंतर बड़ रही है, पाठकीयता बढ़ रही है, विविध रुचि की सामग्री आ रही है और अखबारो की संख्या में भी वृद्धि हो रही है । इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता के क्षेत्र में तो क्रांति सी हो गई है ।
पतन क्योंकि मूल्यों के स्तर पर हुआ है । अतः उसके प्रभावों से पत्रकारिता अलग नहीं है । पत्रकारिता साहित्य एवं सुरुचि के संस्कार आज विदा होते दिख रहे हैं । इसके बावजूद तमाम लोग ऐसे भी हैं, जो भाषा एवं अखबार की सामाजिक जिम्मेदारी को लेकर काफी सचेत हैं । संस्थाओं की पत्रिकाएं बंद होने से एक बार लगा पत्रकारिता की नींव डगमगा रही है। पर उनके समानांतर क्षेत्रीय अखबारों की सत्ता एक बड़ी शक्ति के रूप में सामने आई है । बाहरी-भीतरी खतरे वं प्रभावों के बावजूद हमारी पत्रकारिता का प्रगति रथ सदैव बढ़ता नजर आया है । पत्रकारिता ने हर संकट को पार किया है, वह इस संक्रमण से भी ज्यादा ऊर्जावान एवं ज्यादा तेजस्वी बनकर सामने आएगी, बशर्ते वह अपनी भूमिका ‘जनपक्ष’ की बनाए और संकट मोल लेने का साहस पाले । पत्रकारिता से आज भी सामान्य जन की उम्मीदें मरी नहीं हैं ।
संदर्भ –
1. आधुनिक पत्रकारिता – डॉ. अर्जुन तिवारी (पृष्ठ 1)
2. आधुनिक पत्रकारिता – डॉ. अर्जुन तिवारी (पृष्ठ – प्रस्तावना से)
3. आधुनिक पत्रकारिता – डॉ. अर्जुन तिवारी (पृष्ठ – प्रस्तावना से)
4. आधुनिक पत्रकारिता – डॉ. अर्जुन तिवारी (पृष्ठ – प्रस्तावना से)
5. आधुनिक पत्रकारिता – डॉ. अर्जुन तिवारी (पृष्ठ – प्रस्तावना से)
6. आधुनिक पत्रकार कला – रा.र. खाडिलकर (पृष्ठ – 2)
7. पत्रकारिता का इतिहास एवं जनसंचार माध्यम – संजीव भानावत (पृष्ठ – 3)
8. पत्रकारिता का इतिहास एवं जनसंचार माध्यम – संजीव भानावत (पृष्ठ – 3)
9. पत्रकारिता का इतिहास एवं जनसंचार माध्यम – संजीव भानावत (पृष्ठ – 3)
10. हिंदी शब्द सागर, छठा भाग, (पृष्ठ – 2798)
11. वैज्ञानिक परिभाषा कोष (पृष्ठ – 117)
12. आधुनिक पत्रकारिता – डॉ. अर्जुन तिवारी
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