उद्भव काल

हिंदी पत्रकारिता का उद्भव काल (1826 से 1867)

कलकत्ता से 30 मई, 1826 को ‘उदन्त मार्तण्ड’ के सम्पादन से प्रारंभ हिंदी पत्रकारिता की विकास यात्रा कहीं थमी और कहीं ठहरी नहीं है । पंडित युगल किशोर शुक्ल के संपादन में प्रकाशित इस समाचार पत्र ने हालांकि आर्थिक अभावों के कारण जल्द ही दम तोड़ दिया, पर इसने हिंदी अखबारों के प्रकाशन का जो शुभारंभ किया वह कारवां निरंतर आगे बढ़ा है । साथ ही हिंदी का प्रथम पत्र होने के बावजूद यह भाषा, विचार एवं प्रस्तुति के लिहाज से महत्वपूर्ण बन गया ।

पत्रकारिता जगत में कलकत्ता का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान रहा है । प्रशासनिक, वाणिज्य तथा शैक्षिक दृष्टि से कलकत्ता का उन दिनों विशेष महत्व था । यहीं से 10 मई 1829 को राजा राममोहन राय ने ‘बंगदूत’ समाचार पत्र निकाला जो बंगला, फारसी, अंग्रेजी तथा हिंदी में प्रकाशित हुआ । बंगला पत्र ‘समाचार दर्पण’ के 21 जून 1834 के अंक ‘प्रजामित्र’ नामक हिंदी पत्र के कलकत्ता से प्रकाशित होने की सूचना मिलती है । लेकिन अपने शोध ग्रंथ में डॉ. रामरतन भटनागर ने उसके प्रकाशन को संदिग्ध माना है । ‘बंगदूदत’ के बंद होने के बाद 15 सालों तक हिंदी में कोई पत्र न निकला ।

बनारस अखबार वं सुधाकर –

उत्तर-प्रदेश से गोविन्द नारायण थत्ते के सम्पादन में जनवरी, 1845 में ‘बनारस अखबार’ का प्रकाशनन आरंभ हुआ । इसके संचालक राजा शिव प्रसाद सितारेहिन्द थे । बहुत से लोग इसे ही हिंदी का पहला अखबार मानते हैं, परंतु यह हिंदी भाषी क्षेत्र का प्रथम समाचार पत्र माना जा सकता है । इसमें देवनागरी लिपि के प्रयोग के बावजूद अरबी व फारसी के शब्दों की भरमार थी, जिसे समझना साधारण जनता के लिए कठिन था। पंडित अंबिका प्रसाद वाजेपयी लिखतेहैं – ‘बनारस अखबार की निकम्मी भाषा का उत्तरदायित्व यदि किसी एक पुरुष पर है तो वे राजा शिव प्रसाद सिंह हैं ।’

1850 में बनारस से ही तारा मोहन मैत्रेय के संपादन में ‘सुधाकर’ पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ । यह पत्र साप्ताहिक था तथा बंगला एवं हिंदी दोनों में प्रकाशित होता था । भाषा की दृष्टि से ‘सुधाकर’ को हिंदी प्रदेश का पहला पत्र कहना चाहिए । 1853 में यह पत्र सिर्फ हिंदी में छपने लगा।

‘बनारस अखबार’ एवं ‘सुधाकर’ के बाद ‘मार्तण्ड’ (11 जून, 1846), ज्ञान दीपक (1846), मालवा अखबार (1894), जगदीपक भास्कर (1849), सामदण्ड मार्तण्ड (1850), फूलों का हार (1850), बुद्धिप्रकाश (1852), मजहरुल सरुर (1852), ग्वालियर गजट (1853), आदि पत्र निकले । मुंशी सदासुखलाल के संपादन में आगरा से बुद्धि प्रकाश नामक यह पत्र पत्रकारिता के दृष्टि से ही नहीं वरन भाषा व शैली की दृष्टि से विशेष महत्व रखता है । प्रख्यात समालोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने उसकी भाषा की प्रशंसा करते हुए लिखा है – “बुद्धि प्रकाश की भाषा उस समय की भाषा को देखते हुए बहुत अच्छी होती थी ।”

समाचार सुधावर्षण –

अब धीरे-धीरे हिंदी पत्रों की संख्या बढ़ने लगी । लोगों की दृष्टि पत्रकारिता की ओर उन्मुख हुई । सन् 1854 में कलकत्ता से श्यामसुंदर सेन के संपादन में हिंदी के पहले दैनिक समाचार पत्र ‘समाचार सुधावर्षण’ का प्रकाशन हुआ । यह द्विभाषीय पत्र था, तथा हिंदी व बंगला में छपता था । अपनी निर्भीकता एवं प्रगतिशीलता के कारण उसे कई बार अंग्रेजी सरकार का कोपभाजन भी बनना पड़ा ।

1855 में ‘सर्वहितकारक’ (आगरा) और ‘प्रजा हितैषी’ का प्रकाशन हुआ । 1857 में एकमात्र पत्र निकला जिसका नाम ‘पयामे आजादी’ था ।

पयामे आजादी –

दिल्ली से फरवरी 1857 में प्रकाशित पयामे आजादी का प्रकाशन प्रसिद्ध क्रान्तिकारी अजीमुल्ला खां ने किया था । इसके प्रकाशक एवं मुद्रक नवाब बहादुर शाह जफर पौत्र केदार बख्त थे । यह पत्र पहले उर्दू में निकला, बाद में हिंदी में भी इसका प्रकाशन हुआ । इस पत्र में सरकार विरोधी सामग्री होती थी । इस पत्र ने दिल्ली की जनता में स्वतंत्रता प्रेम की आग फूंक दी । इसी पत्र में भारत का तत्कालीन राष्ट्रीय गीत छपा था, उसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार थीं –

“हम हैं इसके मालिक, हिंदुस्तान हमारा ।
पाक वतन है कौम का जन्नत से भी प्यारा ।।
आज शहीदों ने तुझको, अहले वतन ललकारा ।
तोड़ो गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा ।।”

1861 में हिंदी प्रदेश से चार पत्र निकले जिनमें ‘सूरज प्रकाश’ (आगरा), ‘जगलाभ चिंतक’ (अजमेर), ‘प्रजाहित’ (इटावा), ‘ज्ञानदीपक’ (सिकंदरा) शामिल थे । इसके पश्चात 1863 में ‘लोकमित्र’ (मासिक), ‘भारत खंडामृत’ (1864 – आगरा), ‘तत्वबोधिनी’ (1866 – बरेली), ‘ज्ञान प्रदायिनी पत्रिका’ (1866 – लाहौर), आदि पत्र प्रकाशित हुए । अब तक हिंदी में छपने वाले पत्रों की संख्या पर्याप्त हो चली थी, पर पाठकाभाव, अर्थाभाव के चलते ये जल्द ही काल-कवलित हो जाते थे । 1867 में ‘कवि वचन सुधा’ का प्रकाशन एक क्रांतिकारी घटना थी । भारतेंदु हरीश चंद्र के संपादन में प्रकाशित इस पत्र ने हिंदी साहित्य व पत्रकारिता को नए आयाम दिए । डॉ. रामविलास शर्मा लिखते हैं – “कवि वचन सुधा क प्रकाशन कर भारतेंदु ने एक नए युग का सूत्रपात किया ।” 1867 में ‘कवि वचन सुधा’ के अलावा ‘वृतान्त विलास’ (जम्मू), ‘सर्वजनोपकारक’ (आगरा), रतन प्रकाश (रतलाम), विद्याविलास (जम्मू) का प्रकाशन हुआ ।

No comments: