विकास काल

हिंदी पत्रकारिता का विकास काल (1867-1900)

1867 तक विदेशी शिक्षा के कारण परम्परावादी विचारधारा का लोप हो रहा था, अतः अनेक समाज सुधारकों ने अपनी संस्थाएं कायम की और इसी शिक्षित वर्ग ने पत्रकारिता को नई दिशा प्रदान की । हिंदी पत्रकारिता का यह युग हिंदी गद्य-निर्माण का युग माना जाता है । इस युग के पत्रों में राजनीति, साहित्य, प्रहसन, व्यंग्य तथा ललित निबन्धों की संख्या अधिक रहती थी । इन पत्रों का एकमात्र उद्देश्य सामाजिक, कलुष प्रक्षालन और जातीय उन्नयन था । इस युग का नेतृत्व बाबू हरिशचन्द्र कर रहे थे । यह समय अंग्रेज अधिकारियों की गुलामी का था, परन्तु भारतेंदु जी निडर भाव से राजनैतिक लेख लिखकर जनता-जनार्दन को झकझोर रहे थे । यही कारण है कि यह युग भारतेंदु युग के नाम से भी प्रसिद्ध है । इस युग में अनेक महत्वपूर्ण पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ ।

हरिश्चन्द्र मैगजीन –
15 अक्टूबर, 1873 को काशी से भारतेंदु हरिश चन्द्र ने ही ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’ को जन्म दिया । यह मासिक पत्रिका थी । इसमें पुरातत्व, उपन्यास, कविता, आलोचना, ऐतिहासिक, राजनीतिक, साहित्यिक तथा दार्शनिक लेख, कहानियाँ एवं व्यंग्य आदि प्रकाशित होते थे । लेकिन जब इसमें देशभक्तिपूर्ण लेख निकलने लगे तो इसे बंद कर दिया गया ।

‘बाला-बोधिनी पत्रिका’ 9 जनवरी, 1874 को भारतेंदु ने निकाली । यह पत्रिका महिलाओं की मासिक पत्रिका थी ।

हिंदी प्रदीप –
1 सितम्बर, 1877 को बालकृष्ण भट्ट ने ‘हिंदी प्रदीप’ नाम का मासिक पत्र निकाला । यह पत्र घोर संकट के बावजूद भी 35 वर्षों तक निकलता रहा । भारतेंदु जी ने इस पत्र का उद्घाटन किया । पत्रकारिता की दृष्टि से हींदी प्रदीप का जन्म हिंदी साहित्य के इतिहास में क्रांतिकारी घटना है । इसने हिंदी पत्रकारिता को एक नई दिशा प्रदान की । इसका स्वर राष्ट्रीयता, निर्भीकता तथा तेजस्विता का था, अतः सरकार इर पर कड़ी नजर रखती थी । इसमे हिंदी साहित्य और पत्रकारिता पर सामग्री रहती थी ।

भारत मित्र -
17 मई, 1878 को कलकत्त से यह पत्र प्रकाशित हुआ । जिस समय यह पत्र प्रकाशित हुआ, उस समय वहां से हिंदी का कोई भी पत्र नहीं निकलता था । यह बड़ा प्रसिद्ध और कर्मशील पत्र था । भारत मित्र के कुशल संपादन के कारण इसकी गणना अच्छे पत्रों में होने लगी थी । भारत मित्र की सबसे पहले वैतनिक संपादक पंडित हरमुकुन्द शास्त्री लाहौर से बुलाए गए । इस पत्र की आयु काफी रही । यह पत्र 37 वर्षों तक चला ।

सार सुधानिधि –
13 अप्रैल, 1879 को प्रकाशित सार सुधानिधि पंडित सदानन्दजी के सम्पादन में निकला । इसके संयुक्त संपादक पंडित दुर्गाप्रसाद, सहायक संपादक गोविन्द नारायण और व्यवस्थापक शम्भूनाथ थे । इसकी भाषा संस्कृत मिश्रित थी, अतः कुछ कठिन होती थी, पर साफ थी । लेख अच्छे गंभीर होते थे । यह पत्र राजनीति ही नहीं, अन्य विषयों का भी आलोचक था । यह पत्र राजनीति ही नहीं, अन्य विषयों का भी आलोचक था ।

सज्जन कीर्ति सुधाकर –
ज्यों से निकलने वाला पहला हिंदी पत्र था, क्योंकि राज्यों के सभी पत्र उर्दू व हिंदी में निकलते थे, जिनमें उर्दू का ही प्रथम स्थान होता था । मेवाड़ के महाराणा सज्जनसिंह के नाम पर यह पत्र निकला था, यह पत्र 1879 में आगरा के पंडित बंशीधर वाजपेयी के सम्पादन में प्रकाशित हुआ ।

उचित वक्ता –
पंडित दुर्गाप्रसाद मिश्र ने 7 अगस्त, 1880 को उचित वक्ता को जन्म दिया । मीठी-मीठी कटारी मारने, व्यंग्य, मुंह चिढ़ाने में उचित वक्ता पंच का काम करता था । यह पत्र 15 वर्षों तक प्रकाशित हुआ । इसने इल्बर्ट बिल, प्रेस कानून, वर्नाक्यूलर एक्ट का बड़ी निर्भीकता से विरोध किया ।

भारत जीवन –
बाबू रामकृष्ण वर्मा ने काशी से 3 मार्च 1884 को भारत जीवन प्रकाशित किया । यह पहले चार पृष्ठ का था, बाद में 8 पृष्ठों में छपने लगा । इसका वार्षिक मूल्य डेढ़ रुपया था । यह पत्र 30 वर्षों तक प्रकाशित हुआ । भारत जीवन सदा एक दब्बू अखबार रहा । स्वाधीनता पूर्व साहस से इसने कभी नहीं लिखा ।

हिन्दोस्थान –
1885 में राजा रामपाल सिंह लन्दन से इसे कालाकांकर (प्रतापगढ़) ले आए और यहां इसके हिंदी, अंग्रेज संस्करण प्रकाशित होने लगे । यह उत्तर प्रदेश से महामना पंडित मदनमोहन मालवीय के संपादन में निकला । यह हिंदी क्षेत्र से प्रकाशित होने वाला प्रथम संपूर्ण हिंदी दैनिक पत्र था । इसके सहयोगी नवरतन प्रसिद्ध थे ।

शुभचिन्तक –
1887 में जबलपुर से पंडित रामगुलाम अवस्थी के समपादन में शुभ-चिन्तक पत्र निकला । यह पत्र साप्ताहिक था । बाद में इसके संपादक हितकारिणी स्कूल के हैटमास्टर रायसाहब रघुवरप्रसाद द्विवेदी हो गए ।

हिंदी बंगवासी –
हिंदी बंगवासी 1890 में कलकत्ता से पंडित अमृतलाल चक्रवर्ती के सम्पादन में निकला । यह एकदम नए ढंग का अखबार था । इस पत्र का अपना ऐतिहासिक महत्व है, क्योंकि सभी श्रेष्ठ पत्रकारों ने इसका सम्पादन कार्य किया था । जिनमें सर्वश्री बालमुकुन्द गुप्त, बाबूराव विष्णु पराड़कर, अम्बिका प्रसाद वाजपेयी, लक्ष्मीनारायण गर्दे आदि प्रमुख थे । यह पत्र दीर्घजीवी रहा । इस प्रकार यह पत्र हिंदी के वरिष्ठ पत्रकारों का प्राथमिक विद्यालय सिद्ध हुआ ।

साहित्य सुधानिधि –
हिंदी बंगवासी के बाद मुजफ्फरपुर से जनवरी 1893 को बाबू देवकीनन्दन खत्री ने साहित्य सुधानिधि का प्रकाशन किया । इसके सम्पादक मण्डल में बड़े-बड़े साहित्यकार – बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बाबू राधाराम, राय कृष्णदास, बाबू कीर्तिप्रसाद धे ।

नागरी प्रचारिणी पत्रिका –
यह पत्रिका 1896 में नागरी प्रचारिणी सभा ने त्रैमासिक रूप में प्रकाशित की थी । इसके सम्पाक बाबू श्यामसुन्दर दास, महामहोपाध्याय सुधाकर द्विवेदी, कालीदास और राधाकृष्ण दास थे । 1907 में यह मासिक पत्रिका हो गई और इसके सम्पादक श्यामसुन्दर दास, रामचन्द्र शुक्ल, रामचन्द्र शर्मा और वेणीप्रसाद बनाए गए ।

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