पत्रकारिता – अर्थ एवं परिभाषा
सामाजिक जीवन में चलने वाली घटनाओं, झंझावातों के बारे में लोग जानना चाहते हैं, जो जानते हैं वे उसे बताना चाहते हैं । जिज्ञासा की इसी वृत्ति में पत्रकारिता के उद्भव एवं विकास की कथा छिपी है । पत्रकारिता जहाँ लोगों को उनके परिवेश से परिचित कराती ह, वहीं वह उनके होने और जीने में सहायक है । शायद इसी के चलते इन्द्रविद्यावचस्पति पत्रकारिता को ‘पांचवां वेद’ मानते हैं । वे कहते हैं – “पत्रकारिता पांचवां वेद है, जिसके द्वारा हम ज्ञान-विज्ञान संबंधी बातों को जानकर अपना बंद मस्तिष्क खोलते हैं ।”1
वास्तव में पत्रकारिता भी साहित्य की भाँति समाज में चलने वाली गतिविधियों एवं हलचलों का दर्पण है । वह हमारे परिवेश में घट रही प्रत्येक सूचना को हम तक पहुंचाती है । देश-दुनिया में हो रहे नए प्रयोगों, कार्यों को हमें बताती है । इसी कारण विद्वानों ने पत्रकारिता को शीघ्रता में लिखा गया इतिहास भी कहा है । वस्तुतः आज की पत्रकारिता सूचनाओं और समाचारों का संकलन मात्र न होकर मानव जीवन के व्यापक परिदृश्य को अपने आप में समाहित किए हुए है । यह शाश्वत नैतिक मूल्यों, सांस्कृतिक मूल्यों को समसामयिक घटनाचक्र की कसौटी पर कसने का साधन बन गई है । वास्तव में पत्रकारिता जन-भावना की अभिव्यक्ति, सद्भावों की अनुभूति और नैतिकता की पीठिका है । संस्कृति, सभ्यता औस स्वतंत्रता की वाणी होने के साथ ही यह जीवन अभूतपूर्व क्रांति की अग्रदूतिका है । ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-संस्कृति, आशा-निराशा, संघर्ष-क्रांति, जय-पराजय, उत्थान-पतन आदि जीवन की विविध भावभूमियों की मनोहारी एवं यथार्थ छवि हम युगीन पत्रकारिता के दर्पण में कर सकते हैं ।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो. अंजन कुमार बनर्जी के शब्दों में “पत्रकारिता पूरे विश्व की ऐसी देन है जो सबमें दूर दृष्टि प्रदान करती है ।”2 वास्तव में प्रतिक्षण परिवर्तनशील जगत का दर्शन पत्रकारिता के द्वारा ही संभव है ।
पत्रकारिता की आवश्यकता एवं उद्भव पर गौर करें तो कहा जा सकता है कि जिस प्रकार ज्ञान-प्राप्ति की उत्कण्ठा, चिंतन एवं अभिव्यक्ति की आकांक्षा ने भाषा को जन्म दिया ।ठीक उसी प्रकार समाज में एक दूसरे का कुशल-क्षेम जानने की प्रबल इच्छा-शक्ति ने पत्रों के प्रकाशन को बढ़ावा दिया । पहले ज्ञान एवं सूचना की जो थाती मुट्ठी भर लोगों के पास कैद थी, वह आज पत्रकारिता के माध्यम से जन-जन तक पहुंच रही है । इस प्रकार पत्रकारिता हमारे समाज-जीवन में आज एक अनिवार्य अंग के रूप में स्वीकार्य है । उसकी प्रामाणिकता एवं विश्वसनीयता किसी अन्य व्यवसाय से ज्यादा है । शायद इसीलिए इस कार्य को कठिनतम कार्य माना गया । इस कार्य की चुनौती का अहसास प्रख्यात शायर अकबर इलाहाबादी को था, तभी वे लिखते हैं –
“खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो”3
पत्रकारिता का अर्थ –
सच कहें तो पत्रकारिता समाज को मार्ग दिखाने, सूचना देने एवं जागरूक बनाने का माध्यम है । ऐसे में उसकी जिम्मेदारी एवं जवाबदेही बढ़ जाती है । यह सही अर्थों में एक चुनौती भरा काम है ।
प्रख्यात लेखक-पत्रका डॉ. अर्जुन तिवारी ने इनसाइक्लोपीडिया आफ ब्रिटेनिका के आधार पर इसकी व्याख्या इस प्रकार की है – “पत्रकारिता के लिए ‘जर्नलिज्म’ शब्द व्यवहार में आता है । जो ‘जर्नल’ से निकला है । जिसका शाब्दिक अर्थ है – ‘दैनिक’। दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापों, सरकारी बैठकों का विवरण जर्नल में रहता था । 17वीं एवं 18 वीं शताब्दी में पीरियाडिकल के स्थान पर लैटिन शब्द ‘डियूनरल’ और ‘जर्नल’ शब्दों का प्रयोग आरंभ हुआ । 20वीं सदी में गम्भीर समालोचना एवं विद्वतापूर्ण प्रकाशन को इसके अन्तर्गत रका गया । इस प्रकार समाचारों का संकलन-प्रसारण, विज्ञापन की कला एवं पत्र का व्यावसायिक संगठन पत्रकारिता है । समसामयिक गतिविधियों के संचार से सम्बद्ध सभी साधन चाहे वह रेडियो हो या टेलीविज़न, इसी के अन्तर्गत समाहित हैं ।”4
एक अन्य संदर्भ के अनुसार ‘जर्नलिज्म’ शब्द फ्रैंच भाषा के शब्द ‘जर्नी’ से उपजा है । जिसका तात्पर्य है ‘प्रतिदिन के कार्यों अथवा घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करना ।’ पत्रकारिता मोटे तौर पर प्रतिदिन की घटनाओं का यथातथ्य विवरण प्रस्तुत करती है। पत्रकारिता वस्तुतः समाचारों के संकलन, चयन, विश्लेषण तथा सम्प्रेषण की प्रक्रिया है । पत्रकारिता अभिव्यक्ति की एक मनोरम कला है । इसका काम जनता एवं सत्ता के बीच एक संवाद-सेतु बनाना भी है । इन अर्थों में पत्रकारिता के फलित एव प्रभाव बहुत व्यापक है । पत्रकारिता का मूल उद्देश्य है सूचना देना, शिक्षित करना तथा मनोरंजन करना । इन तीनों उद्देश्यों में पत्रकारिता का सार-तत्व समाहित है । अपनी बहुमुखी प्रवृत्तियों के कारण पत्रकारिता व्यक्ति और समाज के जीवन को गहराई से प्रभावित करती है । पत्रकारिता देश की जनता की भावनाओं एवं चित्तवृत्तियों से साक्षात्कार करती है । सत्य का शोध एवं अन्वेषण पत्रकारिता की पहली शर्त है । इसके सही अर्थ को समझने का प्रयास करें तो अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध दर्ज करना इसकी महत्वपूर्ण मांग है ।
असहायों को सम्बल, पीड़ितों को सुख, अज्ञानियों को ज्ञान एवं मदोन्मत्त शासक को सद्बुद्धि देने वाली पत्रकारिता है, जो समाज-सेवा और विश्व बन्धुत्व की स्थापना में सक्षम है । इसीलिए जेम्स मैकडोनल्ड ने इसे एक वरेण्य जीवन-दर्शन के रूप में स्वीकारा है –
“पत्रकारिता को मैं रणभूमि से भी ज्यादा बड़ी चीज समझता हूँ । यह कोई पेशा नहीं वरन पेशे से ऊँची कोई चीज है । यह एक जीवन है, जिसे मैंने अपने को स्वेच्छापूर्वक समर्पित किया ।”5
पत्रकारिता की परिभाषाएं –
समाज एवं समय के परिप्रेक्ष्य में लोगों को सूचनाएं देकर उन्हें शिक्षित करना ही पत्रकारिता का ध्येय है । पत्रकारिता मात्र रूखी-सूखी सूचनाएं नहीं होती वरन लोगों को जागरूक बनाती है, उन्हें फैसले करने एवं सोचने लायक बनाती है । संवाद की एक स्वस्थ प्रक्रिया का आरंभ भी इसके द्वारा होता है । डॉ. अर्जुन तिवारी कहते हैं – “गीता में जगह-जगह पर शुभ-दृष्टि का प्रयोग है। यह शुभ-दृष्टि ही पत्रकारिता है । जिसमें गुणों को परखना तथा मंगलकारी तत्वों को प्रकाश में लाना सम्मिलित है । गांधीजी तो इसमें समदृष्टि को महत्व देते रहे । समाजहित में सम्यक प्रकाशन को पत्रकारिता कहा जा सकता है । असत्य, अशिव एवं असुंदर के खिलाफ ‘सत्यं शिवं सुन्दरम’ की शंखध्वनि ही पत्रकारिता है ।” इन सन्दर्भों के आलोक में विद्वानों की राय में पत्रकारिता की परिभाषाएं निम्न हैं –
“ज्ञान और विचार शब्दों तथा चित्रों के रूप में दूसरे तक पहुंचाना ही पत्रकला है । छपने वाले लेख-समाचार तैयार करना ही पत्रकारी नहीं गई है । आकर्षक शीर्षक देना, पृष्ठों का आकर्षक बनाव-ठनाव, जल्दी से जल्दी समाचार देने की त्वरा, देश-विदेश के प्रमुख उद्योग-धंधों के विज्ञापन प्राप्त करने की चतुराई, सुन्दर छपाई और पाठक के हाथ में सबसे जल्दी पत्र पहुंचा देने की त्वरा, ये सब पत्रकार कला के अंतर्गत रखे गए ।”6
– रामकृष्ण रघुनाथ खाडिलकर
“प्रकाशन, सम्पादन, लेखन एवं प्रसारणयुक्त समाचार माध्यम का व्यवसाय ही पत्रकारिता है ।”7
– न्यू वेबस्टर्स डिक्शनरी
“मैं समझता हूँ कि पत्रकारिता कला भी है, वृत्ति भी और जनसेवा भी । जब कोई यह नहीं समझता कि मेरा कर्तव्य अपने पत्र के द्वारा लोगों का ज्ञान बढ़ाना, उनका मार्गदर्शन करना है, तब तक से पत्रकारिता की चाहे जितनी ट्रेनिंग दी जाए, वह पूर्ण रूपेण पत्रकार नहीं बन सकता ।”8
– विखेम स्टीड
“सामयिक ज्ञान का व्यवसाय ही पत्रकारिता है । इसमें तथ्यों की प्रप्ति, मूल्यांकन एवं प्रस्तुतिकरण होता है ।”9
– सी.जी. मूलर
“पत्रकार का काम या व्यवसाय ही पत्रकारिता है ।”10
– हिन्दी शब्द सागर
“पत्रकारिता पत्र-पत्रिकाओं के लिए समाचार लेख आदि एकत्रित करने, सम्पादित करने, प्रकाशन आदेश देने का कार्य है ।”11
– डॉ.बद्रीनाथ कपूर
“पत्रकारिता एक पेशा नहीं है बल्कि यह तो जनता की सेवा का माध्यम है । पत्रकारों को केवल घटनाओं का विवरण ही पेश नहीं करना चाहिए, आम जनता के सामने उसका विश्लेषण भी करना चाहिए । पत्रकारों पर लोकतांत्रिक परम्पराओं की रक्षा करने और शांति एवं भाईचारा बनाए रखने की भी जिम्मेदारी आती है ।”12
– डॉ. शंकरदयाल शर्मा
वास्तव में पत्रकारिता भी साहित्य की भाँति समाज में चलने वाली गतिविधियों एवं हलचलों का दर्पण है । वह हमारे परिवेश में घट रही प्रत्येक सूचना को हम तक पहुंचाती है । देश-दुनिया में हो रहे नए प्रयोगों, कार्यों को हमें बताती है । इसी कारण विद्वानों ने पत्रकारिता को शीघ्रता में लिखा गया इतिहास भी कहा है । वस्तुतः आज की पत्रकारिता सूचनाओं और समाचारों का संकलन मात्र न होकर मानव जीवन के व्यापक परिदृश्य को अपने आप में समाहित किए हुए है । यह शाश्वत नैतिक मूल्यों, सांस्कृतिक मूल्यों को समसामयिक घटनाचक्र की कसौटी पर कसने का साधन बन गई है । वास्तव में पत्रकारिता जन-भावना की अभिव्यक्ति, सद्भावों की अनुभूति और नैतिकता की पीठिका है । संस्कृति, सभ्यता औस स्वतंत्रता की वाणी होने के साथ ही यह जीवन अभूतपूर्व क्रांति की अग्रदूतिका है । ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-संस्कृति, आशा-निराशा, संघर्ष-क्रांति, जय-पराजय, उत्थान-पतन आदि जीवन की विविध भावभूमियों की मनोहारी एवं यथार्थ छवि हम युगीन पत्रकारिता के दर्पण में कर सकते हैं ।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के पूर्व आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो. अंजन कुमार बनर्जी के शब्दों में “पत्रकारिता पूरे विश्व की ऐसी देन है जो सबमें दूर दृष्टि प्रदान करती है ।”2 वास्तव में प्रतिक्षण परिवर्तनशील जगत का दर्शन पत्रकारिता के द्वारा ही संभव है ।
पत्रकारिता की आवश्यकता एवं उद्भव पर गौर करें तो कहा जा सकता है कि जिस प्रकार ज्ञान-प्राप्ति की उत्कण्ठा, चिंतन एवं अभिव्यक्ति की आकांक्षा ने भाषा को जन्म दिया ।ठीक उसी प्रकार समाज में एक दूसरे का कुशल-क्षेम जानने की प्रबल इच्छा-शक्ति ने पत्रों के प्रकाशन को बढ़ावा दिया । पहले ज्ञान एवं सूचना की जो थाती मुट्ठी भर लोगों के पास कैद थी, वह आज पत्रकारिता के माध्यम से जन-जन तक पहुंच रही है । इस प्रकार पत्रकारिता हमारे समाज-जीवन में आज एक अनिवार्य अंग के रूप में स्वीकार्य है । उसकी प्रामाणिकता एवं विश्वसनीयता किसी अन्य व्यवसाय से ज्यादा है । शायद इसीलिए इस कार्य को कठिनतम कार्य माना गया । इस कार्य की चुनौती का अहसास प्रख्यात शायर अकबर इलाहाबादी को था, तभी वे लिखते हैं –
“खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो”3
पत्रकारिता का अर्थ –
सच कहें तो पत्रकारिता समाज को मार्ग दिखाने, सूचना देने एवं जागरूक बनाने का माध्यम है । ऐसे में उसकी जिम्मेदारी एवं जवाबदेही बढ़ जाती है । यह सही अर्थों में एक चुनौती भरा काम है ।
प्रख्यात लेखक-पत्रका डॉ. अर्जुन तिवारी ने इनसाइक्लोपीडिया आफ ब्रिटेनिका के आधार पर इसकी व्याख्या इस प्रकार की है – “पत्रकारिता के लिए ‘जर्नलिज्म’ शब्द व्यवहार में आता है । जो ‘जर्नल’ से निकला है । जिसका शाब्दिक अर्थ है – ‘दैनिक’। दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापों, सरकारी बैठकों का विवरण जर्नल में रहता था । 17वीं एवं 18 वीं शताब्दी में पीरियाडिकल के स्थान पर लैटिन शब्द ‘डियूनरल’ और ‘जर्नल’ शब्दों का प्रयोग आरंभ हुआ । 20वीं सदी में गम्भीर समालोचना एवं विद्वतापूर्ण प्रकाशन को इसके अन्तर्गत रका गया । इस प्रकार समाचारों का संकलन-प्रसारण, विज्ञापन की कला एवं पत्र का व्यावसायिक संगठन पत्रकारिता है । समसामयिक गतिविधियों के संचार से सम्बद्ध सभी साधन चाहे वह रेडियो हो या टेलीविज़न, इसी के अन्तर्गत समाहित हैं ।”4
एक अन्य संदर्भ के अनुसार ‘जर्नलिज्म’ शब्द फ्रैंच भाषा के शब्द ‘जर्नी’ से उपजा है । जिसका तात्पर्य है ‘प्रतिदिन के कार्यों अथवा घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करना ।’ पत्रकारिता मोटे तौर पर प्रतिदिन की घटनाओं का यथातथ्य विवरण प्रस्तुत करती है। पत्रकारिता वस्तुतः समाचारों के संकलन, चयन, विश्लेषण तथा सम्प्रेषण की प्रक्रिया है । पत्रकारिता अभिव्यक्ति की एक मनोरम कला है । इसका काम जनता एवं सत्ता के बीच एक संवाद-सेतु बनाना भी है । इन अर्थों में पत्रकारिता के फलित एव प्रभाव बहुत व्यापक है । पत्रकारिता का मूल उद्देश्य है सूचना देना, शिक्षित करना तथा मनोरंजन करना । इन तीनों उद्देश्यों में पत्रकारिता का सार-तत्व समाहित है । अपनी बहुमुखी प्रवृत्तियों के कारण पत्रकारिता व्यक्ति और समाज के जीवन को गहराई से प्रभावित करती है । पत्रकारिता देश की जनता की भावनाओं एवं चित्तवृत्तियों से साक्षात्कार करती है । सत्य का शोध एवं अन्वेषण पत्रकारिता की पहली शर्त है । इसके सही अर्थ को समझने का प्रयास करें तो अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध दर्ज करना इसकी महत्वपूर्ण मांग है ।
असहायों को सम्बल, पीड़ितों को सुख, अज्ञानियों को ज्ञान एवं मदोन्मत्त शासक को सद्बुद्धि देने वाली पत्रकारिता है, जो समाज-सेवा और विश्व बन्धुत्व की स्थापना में सक्षम है । इसीलिए जेम्स मैकडोनल्ड ने इसे एक वरेण्य जीवन-दर्शन के रूप में स्वीकारा है –
“पत्रकारिता को मैं रणभूमि से भी ज्यादा बड़ी चीज समझता हूँ । यह कोई पेशा नहीं वरन पेशे से ऊँची कोई चीज है । यह एक जीवन है, जिसे मैंने अपने को स्वेच्छापूर्वक समर्पित किया ।”5
पत्रकारिता की परिभाषाएं –
समाज एवं समय के परिप्रेक्ष्य में लोगों को सूचनाएं देकर उन्हें शिक्षित करना ही पत्रकारिता का ध्येय है । पत्रकारिता मात्र रूखी-सूखी सूचनाएं नहीं होती वरन लोगों को जागरूक बनाती है, उन्हें फैसले करने एवं सोचने लायक बनाती है । संवाद की एक स्वस्थ प्रक्रिया का आरंभ भी इसके द्वारा होता है । डॉ. अर्जुन तिवारी कहते हैं – “गीता में जगह-जगह पर शुभ-दृष्टि का प्रयोग है। यह शुभ-दृष्टि ही पत्रकारिता है । जिसमें गुणों को परखना तथा मंगलकारी तत्वों को प्रकाश में लाना सम्मिलित है । गांधीजी तो इसमें समदृष्टि को महत्व देते रहे । समाजहित में सम्यक प्रकाशन को पत्रकारिता कहा जा सकता है । असत्य, अशिव एवं असुंदर के खिलाफ ‘सत्यं शिवं सुन्दरम’ की शंखध्वनि ही पत्रकारिता है ।” इन सन्दर्भों के आलोक में विद्वानों की राय में पत्रकारिता की परिभाषाएं निम्न हैं –
“ज्ञान और विचार शब्दों तथा चित्रों के रूप में दूसरे तक पहुंचाना ही पत्रकला है । छपने वाले लेख-समाचार तैयार करना ही पत्रकारी नहीं गई है । आकर्षक शीर्षक देना, पृष्ठों का आकर्षक बनाव-ठनाव, जल्दी से जल्दी समाचार देने की त्वरा, देश-विदेश के प्रमुख उद्योग-धंधों के विज्ञापन प्राप्त करने की चतुराई, सुन्दर छपाई और पाठक के हाथ में सबसे जल्दी पत्र पहुंचा देने की त्वरा, ये सब पत्रकार कला के अंतर्गत रखे गए ।”6
– रामकृष्ण रघुनाथ खाडिलकर
“प्रकाशन, सम्पादन, लेखन एवं प्रसारणयुक्त समाचार माध्यम का व्यवसाय ही पत्रकारिता है ।”7
– न्यू वेबस्टर्स डिक्शनरी
“मैं समझता हूँ कि पत्रकारिता कला भी है, वृत्ति भी और जनसेवा भी । जब कोई यह नहीं समझता कि मेरा कर्तव्य अपने पत्र के द्वारा लोगों का ज्ञान बढ़ाना, उनका मार्गदर्शन करना है, तब तक से पत्रकारिता की चाहे जितनी ट्रेनिंग दी जाए, वह पूर्ण रूपेण पत्रकार नहीं बन सकता ।”8
– विखेम स्टीड
“सामयिक ज्ञान का व्यवसाय ही पत्रकारिता है । इसमें तथ्यों की प्रप्ति, मूल्यांकन एवं प्रस्तुतिकरण होता है ।”9
– सी.जी. मूलर
“पत्रकार का काम या व्यवसाय ही पत्रकारिता है ।”10
– हिन्दी शब्द सागर
“पत्रकारिता पत्र-पत्रिकाओं के लिए समाचार लेख आदि एकत्रित करने, सम्पादित करने, प्रकाशन आदेश देने का कार्य है ।”11
– डॉ.बद्रीनाथ कपूर
“पत्रकारिता एक पेशा नहीं है बल्कि यह तो जनता की सेवा का माध्यम है । पत्रकारों को केवल घटनाओं का विवरण ही पेश नहीं करना चाहिए, आम जनता के सामने उसका विश्लेषण भी करना चाहिए । पत्रकारों पर लोकतांत्रिक परम्पराओं की रक्षा करने और शांति एवं भाईचारा बनाए रखने की भी जिम्मेदारी आती है ।”12
– डॉ. शंकरदयाल शर्मा
13 comments:
आपने हिन्दी में यह बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज बनाया है। इसे मैं एक पुस्तक मान रहा हूँ।
इसलिये यदि प्रथम पृष्ठ पर मह्त्वपूर्ण विषयों की सूची डाल दें तो यह बहुत उपयोगी सन्दर्भ बन सकता है।
और भी अच्चा होयदि इसे हिन्दि विकिपीडिया पर डाल दिया जाय।
प्रिय द्विवेदी जी
नमस्कार
हिन्दी में पत्रकारिता से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर सामग्री का सर्वथा अभाव है। पत्रकारिता पर हिन्दी में यदि कुछ पुस्तकें प्रकाशित भी हुई हैं, तो उनमें अधिकतर हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास जैसे विषयों को ही समर्पित हैं। आज मैंने हिन्दी में पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं पर सामग्री उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कुछ देर पहले ही एक ब्लॉग बनाया है। गूगल पर सर्फिंग करते हुए अभी अचानक आपके ब्लॉग पर नज़र पड़ गई तो मालूम हुआ कि मुझसे पहले भी इस पूनीत कार्य में आप अपनी आहुति डाल रहे हैं। इस ब्लॉग से पत्रकारिता के विद्यार्थियों को ही नहीं बल्कि पत्रकारिता से जुड़े हर व्यक्ति का फायदा होगा।
कृपया इस प्रयास को जारी रखें। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। धन्यवाद।
शुभेच्छु
सुरेन्द्र पॉल
व्याख्याता पत्रकारिता
कर्मवीर विद्यापीठ, खण्डवा
(माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल)
ई-मेल surendersm@gmail.com
अत्यंत ज्ञानवर्धक !!समझने के लिये बार-बार पढना पढा !कुछ समझ पाया कुछ समझना है
सर मेरा नाम रवि टांक है और मैने माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के नोएडा कैम्पस से एमए जनसंचार में किया है। मैं नेट की तैयारी के संदर्भ में आपके इस ग्रंथ तक पहुंचा मुझे बेहद खुशी हुई कि आपने हमारे मार्गदर्शन का प्रयास किया है।
bahut achcha likha hai aap tarif ke kabil hai mere pass aapki tarif ke sABD NAHI HAI JINIYEARS HO AAP
में एक पत्रकार हूँ इतनी जरुरी बातें मुझे नहीं मालूम थी आप बहुत कुछ बताया की पत्रकार किया है मुझे आपकी बातें जानकर खुशी हुई मुझे गर्व हुवा एक पत्रकार होने पर में भी कुछ कहना चाहूँगा पत्रकारिता करने में धन नहीं मिलता आनंद आता है
महोदय,
अखबारी पत्रकारिता पर अनेक किताबें बाजार में हैं। इन्हीं में एक किताब आपके इस छोटे भाई की भी जुड़ गई है। किताब बाकी किताबों से इस मायने में अलग है कि इसमें सिद्धांत पर कम अख़बारों की व्यावहारिक पत्रकारिता पर ज्यादा जोर दिया गया है। आजकल अख़बारों के दफ्तरों में किस प्रकार काम होता है, इसकी जानकारी पुस्तक को पढ़कर आसानी से हासिल की जा सकती है।
किताब में बौद्धिकता का आतंक नहीं है। बहुत सरल ढंग से संपादन, रिपोर्टिंग और पेज निर्माण को समझाने का प्रयास किया गया है। इसमें पत्रकारिता के इतिहास के बजाय वर्तमान की बात है। फोकस इस पर रखा गया है कि एक युवा को प्रिंट का पत्रकार बनने के लिए क्या तैयारी करनी चाहिए और अख़बारों में उसे किस प्रकार का काम करना पड़ता है। अनेक अख़बारों में आज पत्रकार ही पेज भी बना रहे हैं इसलिए पुस्तक में संपादन, रिपोर्टिंग के साथ पेज निर्माण पर भी विशेष सामग्री दी गई है।
मुझे विश्वास है कि इस किताब को पढ़कर कोई भी युवा किसी अख़बार के दफ्तर में आत्मविश्वास के साथ प्रवेश कर सकता है।
पुस्तक महल, दिल्ली से छपी इस पुस्तक की कीमत 195 रुपये है। शीर्षक है-
"पत्रकारिता में अपना कैरियर बनाइए"
'सफल पत्रकार बनने के लिए 100 व्यावहारिक दिशा निर्देश'
जो साथी पुस्तक को घर बैठे प्राप्त करना चाहते हैं वे कृपया 245 रुपये (195 + 50 रुपये डाक खर्च) का चेक lav kumar singh के नाम पर मेरे पते पर भेजें या मेरे स्टेट बैंक के खाता नंबर 10879591124 में ये राशि जमा कराकर मुझे सूचित करें, पुस्तक तुरंत उनके पास पहुंच जाएगी।
सादर।
लव कुमार सिंह
(स्वतंत्र पत्रकार और लेखक। अखबारी पत्रकारिता में 20 साल का अनुभव। अभी तक 5 किताबों का लेखन। एक किताब पत्रकारिता पर, एक डॉक्टर से खुद को दूर रखने पर, एक पति-पत्नी के प्रेम पर, एक साहित्यकारों के प्रेम प्रसंगों पर और एक आत्मरक्षा पर।)
writer's address-----------
lav kumar singh
45/1, shastri nagar meerut-250005
phone- 9837890600
mail- lavpsingh.singh@gmail.com
मै सबसे पहले ईश्वर का शुक्रिया अदा करता हूँ की ईश्वर ने आपको इस लायक बनाया की आपने पत्रकारिता की सही परिभाषानियुक्ति प्रमाण पत्र को आपने इंटेरनेट के माध्यम से हम तक पहुँचाया इस हेतु आपका शुक्रिय.
Thanks sir ji
अत्यन्त सराहनीय कार्य
लाजवाब । आपकी प्रशंसा के लिए शब्द ही नहीं मिल रहे ।
Boht boht dhanwad sir jo hume ptrikarikta ke bare m btaye
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